पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५१०

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4 + नान- THend r a मन ++ + + + भक्तिसुधास्वाद तिलक । मेरे धाम आवो, गावों गुण, रहो जौलौ तेरी मति पागी हैं।" "मगह मैं जाय, भक्ति भाव को दिखाय, बहु फूलनि मँगाय, पौढ़ि मिल्यो हरि रागी हैं ।। २८१ ॥ (३४८) वात्तिक तिलक। स्वर्ग से एक अप्सरा आपकी परीक्षा के लिये आई, अपना सब करतब कर हार के लजित हो लौट गई। "जेहि राखै रघुवीर, वाल को बंका कर सके ?" आपने आँखों का फल पाया, श्रीलक्ष्मीनाथ ने चतुर्भुजरूप से दर्शन दिये और सीस पर करसरोज रखके आज्ञा की कि "जब तुम्हारा जी चाहै तब सबके देखते शरीर सहित मेरे परमधाम में चले भाइयो, और जब तक यहाँ रहो मेरे गुण गायो॥" श्रीकबीरजी का | विक्रमी संवत् ईसबी सन् | शाके । कलि शब्द जन्म १४५१ । १३९४* । १३१६ ४४९५ परमधाम १५५२ १४९५ । १४१७ ४५९६ H. H. Wilson, Esg. ने १४४८ ईसवी अर्थात १५०५ विक्रमी लिखा है श्रीकबीरजी १५४९ में मगहर गये। वहीं से संवत् १५५२ के अगहन सुदी एकादशीको परमधाम पहुंचे। दो० "पन्द्रह सौ उनचास में, मगहर कीन्हों गौन । अगहन सुदी एकादशी, मिले पौन सों पौन ॥" श्री १०८ कवीरजी मगहर जा, भावभक्ति प्रचार कर, बड़े ही प्रसिद्ध हुए । फूल मँगा, उनको विका, उस पर लेद, एक सादा वन ओढ़, १०१ (एकसौ एक) वर्ष की अवस्था में, श्रीपरमधाम को पहुँचे । जय । जय ॥ हिन्दू 0 मुसलमान दोनों ने देखा कि वन के तले कुछ नहीं था, केवल फल ही छल थे। "सतों! मते मात जन रंगी॥ कोऊ पीवत प्याला प्रेमसुधारस मतवाला सतसंगी।" "सुर नर मुनि जिते पीर औलिया" जिन्ह रे पिया तिन्ह जाना । कह कबीर "गे की शक्कर क्योंकर सकौं बसाना ?" श्रीकबीरजी जुलाहे के घर तो पले ही थे, और जुलाहे उनके परिवार, इससे इनका सम्बन्ध मुसलमानो से स्पष्ट है । और, मानसी भागवत सस्कार पूर्वक श्रीराम नाम