५०० ARMA -NAMANA .. .11+ ना . . ..M et श्रीभक्तमाल सटीक । बड़े आदर से दोनों को लाके दिव्य दारका और श्रीहरिकृपा का वृत्तान्त सुना, तथा छाप को देखकर चरणों में लिपट गये, श्रीपीपाजी ने छाप को पुजारी के हाथों में सौंप श्रीमुख वचन कह सुनाया कि "जिसके छाप लगेगी सो भवसागर से उत्तीर्ण हो जायगा ॥ श्रीग्रायुध अंकित प्राणियों की महिमा श्रीपीपाजी ने भगवत् प्राज्ञा से समझाके कहा कि "लोगों का पाप छुड़ाया कीजिये ।” दर्शन को भानेवाले लोगों की भीड़ देखकर श्रीपीपाजी श्रीसीता- सहचरी की सम्मति से शीघ्र ही वन की ओर चल दिए । श्रीपीपाजी ने श्रीसहचरीजी को समझाया कि "तुम सरीखी युवा सुन्दरी को मुझ अकेले के साथ चलना ठीक नहीं है,"पर श्रीकल्यानीजी ने एक न सुना॥ _वन में छः "मिलान" जाने पर दुष्ट पठान लुटेरों की दृष्टि श्रीसह- चरीजी पर पड़ी और साथ ही सबके सब इन दोनों पर टूट पड़े । स्त्री को छीन चम्पत हुए। श्रीसीतासहचरी भगवत् से विनय करने लगीं कि “प्रभो यदि तुमने तनक विलंब किया तो इसकी लाज और प्राण पर न जाने कि क्या और कैसा हो?" "तुम को तो है यह खेल कौतुक, पर। जाते हैं लाज प्राण याँ, प्रियवर ! हूँ मैं अबला न सिख दो यों बढव । जुक्त ऐसी हँसी श्री सिष है कब ? सब औसर में हौ निकट प्यारे। तजि विलँब बेग हो प्रगट प्यारे॥" वहीं, श्रीहरि ने निगुड़े दुष्टों को पूरा दंड और श्रीसहचरीजी को दर्शन दिया । श्रीपीपाजी भगवतइच्छा समझ एकांत को सुखद मान भगवद्- भजन में चैन करने लगे, तथापि श्रीहरि श्रीसहचरीजी को श्रीपीपाजी के पास पहुँचाकर आप अंतर्द्वान हो गये॥ . . :