पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

+Mb...... madme Hd -M444tanaनन- श्रीभक्तमाल सटीक माँगी, उसने कहा ("बसवाड़ी में से जाकर काट क्यों नहीं लाते !" आपने कहा “बहुत अच्छा, रामकृपा से ऐसा ही होगा) सो उसकी वे सब सूखी लाठियाँ धरती में जड़ पकड़कर, हरे हरे बाँस हो गए आपने उसमें से एक लाठी काट ली। फिर "श्रीचीधड़ भगत का नाम सुनके उनसे मिलने को चले ॥ श्रीपीपाजी और श्रीसीता-सहचरी का नाम, यश, देश-देश, गाँव- गाँव, गली-गली, प्रसिद्ध हो गया था | (३५२) टीका । कवित्त । (४९१) दोऊ तिया पति देखें पाए भागवत, ऐर्षे घर की कुगति रति साँची लै दिखाई है । लहँगा उतारि बेचि दियो, ताको सीधौ, लियो “करौ अजू पाक," वधू कोठी मैं दुराई है ॥ करीले रसोई सोई, भोग लगि बैठे, कहाँ "आवौं मिली दोई "कही पाछे सीथ भाई है ।” “वहू को बुलावी ल्यावो प्रानि कै जिमाँवो,” तब सीता गई ठौर जाइ नगन लखाई है ।। २६१ ॥ (३३८) वात्तिक तिलक । श्रीचीधड़ भगतजी और उनकी भगतिन ने भागवतों के दर्शन से अति आनंद पाया। चीधड़ भगतजी ने पूछा तो जान पड़ा कि घर में कुछ नहीं है । श्रीपीपाजी और सीतासहचरी का नाम सुन- के दोनों हर्ष से फूले नहीं समाये ॥ चीधड़जी की धर्मपत्नीजी ने अपना लहँगा उतारके बड़े प्रेम से दिया और श्रीचीधड़जी ने उसको बेच, सीधा सामग्री मोल ले श्रीपीपाजी के आगे ला रक्खा ॥ जब रसोई होगई, और श्रीयुगल सार को भोग लग चुका, तो आप दोनों ने कहा "भगतिनजी को बुलाइये, सब मिलकर प्रसाद पा, इन्होंने उत्तर दिया “वह पीछे से सीथ प्रसादी लेगी आप दोनों पावें ।" चार पत्ते परस के श्रीपीपाजी ने सहचरीजी को कहा कि “तुम आप जाके भगतिनजीको लिवाय लाओ।" श्रीसहचरीजी आके देखती हैं तो भगतिनजी को एक कोठी में नंगी बैठी पाया ॥