पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५२७

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श्रीभक्तमाल सटीक । के रुपये से श्रीपीपाजी ने भोजन और वन से सेवा करके उस समय संतों के समाज को बड़ाही प्रसन्न किया। श्रीकृपा से वह पनिजारा तब से बड़े प्रेम से साधुसेवा करने लगा। एक दिन श्रीपीपाजी घोड़े पर चढ़ तड़ाग में स्नान को गए, घोड़े को जब योंही छोड़ स्नान आदि में लगे, तव दुष्टों ने घोड़े को चुरा लेजाकर अपने यहाँ पाँध रक्खा । परन्तु जब श्रीपीपाजी स्नान आदि करके चलने लगे तो घोड़े को वहाँ कसा कसाया श्रीरामकृपा से हिहनाता ऐसा उपस्थित पाया कि मानों उसको कसके अभी कोई लाया है। ___ श्री १०८ पीपाजी का समय, विक्रमी संवत् की पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तथा सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में था। (३५९) टीका । कवित्त । (४८४) गये हे बुलाये भाप, पाछे घर संत आये, अन्न कछु नाहि, “कहूँ सोलहवी शताब्दी के अन्त ( सवत् १५९७ ) मे श्रीअवध प्रदेश "जायस" के मध्य मलिक मुहम्मद जायसी ने "पद्मावत" ( दोहे चौपाइयो मे) प्रशंसनीय रची।

  • जिसके न्याय में श्रीपीपाजी की सहायता बिन, राजा तथा उसके मन्त्री असमर्थ थे,

वह शगड़ा यह था कि एक तालाब पर किसी पथिक की सुन्दर स्त्री के निकट कोई अनचीन्हा पुरुष आकर कहने लगा कि यह स्त्री मेरी है । झगड़ा अन्त को राजा की कचहरी में पहुँचा, साक्षी के अभाव से राजा मंत्री सब चकराये थे, श्रीपीपाजी सर्वज्ञ जब ठीक बात समझ गये तो, लोहे के छोटे बड़े कई मजूषे ( सदूक Box ) और ताला मगा के एक लोहे का वोतल सा वस्तु और उसका पेच एक वली चीर के हाथ में धरा के, राजा से बोले कि दोनो मनुष्यों में से जो इस बोतल मे आधे घंटे तक रह सके सोही इस स्त्री का स्वामी समझा जाय।" इतना सुन एक तो चुप हो रही पर दूसरा यह कहकर कि "मैं बोतल के भीतर जाताह" अदृश्य हो गया। श्रीपीपाजी ने वीर को पेच चढ़ाने की आज्ञा देकर, लोहे के बोतल को लोहे के सबसे छोटे मंजूषे में और उसको उससे बड़े मे तथा क्रमश एक को दूसरे में धरते और ताला लगवाते हुए, अंत को कहा कि "यह मनुष्य नही है, दैत्य प्रेत है यदि उसमे से निकलेगा तो भारी उपद्रव मचावेगा ॥ कोई कहते है कि धरती में गाड़ दिया गया और कोई कहते है कि श्रीपीपाजी उसकी सुगति के कारण हुए, दोनो प्रकार से सुना जाता है । जो मनुष्य चुप हो गया था वही उस स्त्री का पति था, स्त्री उसको दे दी गई।