पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५३५

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MAHA.. MAHARARAN श्रीभक्तमाल सटीक । पति को जीता पा, सब प्रसंग सुना, दोनों सीताराम सीताराम कहते आके चरणों पर गिरे और शिष्य हुए॥ दो० "सिला सुतिय भइ, गिरि तरे, मृतक जिये जग जान । राम अनुग्रह सगुन शुभ, सुलभ सकल कल्यान ॥" (६) एक राति चोर भाकर भैंस को चुरा ले चले, श्रीपीपाजी भैंस के बच्चे को लिए हुए यह कहते साथ चले कि “पड़िया भी लेते जाइये, "माँ ! माँ ॥"चिल्लाता है इसके विना भैंस दूध क्यों कर देगी?" वचन सुन चोर भैंस लिये लौटे और चरणों पर गिरके भैंस और पड़िया खूटों में बाँध थापके शरणागत हो गये। (७) एक समय भीड़भाड़ को त्याग, श्रीपीपाजी और श्रीसीता- सहचरीजी एक एकांत निर्जन ठाँव में जा भजन करने लगे, उस ठोर भी एक भाग्यवान् महाजन जा पहुँचा और गाड़ी भर अन्न, घी, चीनी और द्रव्य आपको भेट किये । उसी समय लुटेरे पहुंचे और उनको सहज ही में श्रीपीपाजी ने गाड़ी सौंप दी । कई पल के अनंतर आपने लुटेरों से जाके यह कहा कि “मेरे पास इतने रुपये भी हैं, सो भी ले लो।" डाकुओं ने आपका नाम पूछा, पहिचाना, दंडवत् कर, रुपये फेर, गाड़ी भी उसी स्थान पर फिर पहुँचा दी और शिष्य होकर भवसागर पार हो गये। (८) एक वृत्तान्त सुनिये । किसी दिन एक ही साथ आपको पाँच गाँव से न्योता आया, और इतने में कुछ संत लोग भी आ गये, आप उनके सत्कार में तत्पर हो, पाँचौं प्रेमियों का मन रखने के लिये, पाँच शरीर धीर पाँचौं ठौर जा, प्रत्येक के उत्सव समाज में विराजते रहे। उनमें से एक जगह पर प्रभात होते अपने शरीर को त्याग दिया, वहाँ पर आपकी शिष्या दो बाई भी उपस्थित थीं, वे यह घटना अपने सामने देख, दुःखी हो, श्रीसीतासहचरीजी से निवेदन करने को टोड़े- नगर को चली। जब वे दूसरे ग्राम में आई, तो देखा कि वहाँ भी श्रीपीपाजी के मृतक शरीर को जला रहे हैं, तीसरे ग्राम में भी उन दोनों ने आप-