पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५३६

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marwadi.04antant-IN HAMRAMMAR भक्तिसुधास्वाद तिलक। ५१७ के मृतक देह की जलती चिता देखी, इसी प्रकार पाँचौं ग्राम में उन दोनों ने सुना कि रात उत्सव में श्रीपीपाजी विराजते थे भोर को तन त्याग किया और आज उनके शव की चिता जल रही है। यह आश्चर्य देख सुन ज्योंही वे दोनों बाइयाँ टोड़नगर में पहुँची, तो देखा कि संतसमाज में श्रीसीतासहचरीजी समेत श्रीपीपाजी महाराज आनन्दयुत सीताराम जपते झूमते विराजमान हैं। ___ तब दोनों आपके चरणों पर गिरी और समाज में सब वार्ता कही। बहुतों ने सुनके आश्चर्य माना। उन दोनों ने श्रीगुरु में से मनुष्य बुद्धि उठाली और गुरुप्रभाव विचारि अकथनीय आनन्द पाया ॥ चौपाई। "यह न कछुकगुरु की प्रभुताई । विश्व रूप व्यापक सुखदाई ॥" दोनों ने अपने तई बड़ी भाग्यवती जाना॥ (8) श्रीपीपाजी के यहाँ साधुसेवा उठाने के बहुत से रुपये एक बानिये के होगये. उसने वारंवार माँगा पर आपके यहाँ उन दिनों कौड़ी न थी, बनिये ने पंचायत में वही रखके कहा कि महाराजजी के यहाँ बहुत रुपये हो गये हैं देते नहीं हैं। पंचों ने जो वहीं देखी तो बगुलापङ्ख कोरा कागद पाया, महाराजजी के नाम कुछ लिखा न था। पंचों ने बहुत झुंझलाके बनिये को दंड देना चाहा।। (१०) यह समाचार श्रीस्वामीजी ने जानकर कहला भेजा कि "बनिये के रुपये हैं ठीक सही, परंतु वह बहुत शीघ्रही रुपया माँगता कड़ाई करता था, उसी कष्ट के कारण भगवत् इच्छा से उसकी बही कोरी हो गई।” बनिया चरण पर गिर के गिड़गिड़ाने लगा। एक महाजन आ पहुँचा और श्रीसीतारामकृपा से बनिये के सब रुपये चुकाकर उस बापुरे को शोकरहित कर दिया। (११) टोड़ेनगर में जो श्रीमहाराजजी की कुटी थी, वह ऋद्धि सिद्धि से भरी, परंतु एक दिन श्रीपीपाजी और श्रीसीतासहचरीजी सम्मत करके, झंझट समझ के, उस भरे घर को त्याग कर, किसी और . चल दिये।