पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५३७

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+ navarranti-mumpie - m a gamin -14++NHIMINGH ५१८ ....... श्रीभक्तमाल सटीक (१२) एक ब्राह्मण जिसको गोहत्या लगी थी और पंचों ने उसे जाति से निकाल दिया था। श्रीपीपाजी का नाम सुन, मापके शरण में श्रा, सब वार्ता सुना रोने लगा। चौपाई। "पीपा करो जपो हरि नामा। मिटै ब्रह्महत्या दुखधामा॥ जपन सो राम नाम द्विज लाग्यो । तनते तुरत पाप सब भाग्यो ।” . स्वामीजी ने श्रीभगवत चरणामृत और प्रसाद पवाकर उसको विदा कर दिया पर कहर ब्राह्मणों ने जाति में नहीं लिया । तर श्रीपीपाजी ने उती ब्राह्मण के हाथों से नैवेद्य श्रीहनुमानजी के मंदिर में रखवाया। जब थार उतारा गया, भोग लगने के चिह्न पाए गए । यह पाश्चर्य देख सब ब्राह्मणों ने उसको अब हत्या रहित जान जाति में ले लिया | (१३) बहुत काल बीतने से टोड़े के राजा सूर्यसेनमल को श्रीगुरु- चरणारविन्द के दर्शन की बड़ी ही उत्कण्ठा उपजी । राजा ने घुड़चढ़ों को जिधर तिधर भेजा कि आपको ढूँढ़ लावें। उनमें से एक ने बीस दिन के रास्ते पर आपके दर्शन पाये । राजा की लालसा प्रार्थना सुनाई। मापने उत्तर दिया "हमें उनकी कामना की सुधि हो चुकी है, अभी अभी उसको दर्शन देने के लिये उपस्थित थे ही।" उस घुड़चढ़े को एक पत्र दे, विदा किया। आप और श्रीसीतासहचरीजी ने उसी क्षण राजा के पास टोडेनगर पहुँचकर उसको अपने दर्शनों से कृतार्थ किया । बहुत दिन पीछे वह घुड़चढ़ा भी आ पहुँचा और सब वानी कही। . (१४) एक संत ने कुछ कारज के लिये श्रीपीपाजी से धन माँगा आपने राजा सूर्यसेन व दूसरे राजा से दिलवा दिया। ' (१५) श्रीरंगदास नाम एक भगवद्भक्त ने, जो श्री ६ अनंता- नन्द स्वामी के शिष्य आपके भतीजे चेला लगते थे, विनयपत्र भेज श्रीपीपाजी को बुलाया। भाप और श्रीसीतासहचरीजी दोनों गए। अगुभानी और अति चादर किया ।