पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५४०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । डूबी जाती है," श्रीपीपाजी ने उसी बैल की नाथ उस बाह्मण के हाथ में पकड़ा दी, ब्राह्मण देवता बेल लेके लम्बे हुए। __उधरवहतेली का लड़काराने चिल्लानेलगा,आपने उसको चुप कराके प्रतीति कराया कि तेरा बैल तेरे घर बँधा है । लड़के ने घर आके देखा तो वस्तुतः एक बैल खूटे पर वधा है । लड़का बड़ा प्रसन्न हुआ और श्रीस्वामीमहाराजजी का शिष्य हो गया। (६) आप भी बड़े प्रसन्न हुए और श्रीयुगलसकरि की कृपा के धन्य- वाद में बहुत अन्न धन निछावर किया । (७) एक साल उस प्रदेश में भारी अकाल पड़ा, राजा सूर्यसेनमल के सँभाले न सँभला । प्रजा बहुत दुःख पाने लगी। राजाने श्रीपीपाजी से प्रार्थना की, श्रीपीपाजी अपनी कुटी में से सबको अन्न जल कपड़े इत्यादि बाँटने लगे और धरती में गड़ा धन उखाड़ उखाड़ अकालपर्यन्त बाँटते रहे कि टोड़ानगर, वरन, सूर्यसेनमल के राज्य भर के लोग, उस कराल काल में,अति ही सुखी रहे । (८) श्रीपीपाजी के चरित अनेक बड़े और विस्तृत हैं, जो कुछ संक्षेप से कहे गये उसीसे साधु और भक्त जन विचार लेंगे। __() जो एक बेर श्रीपीपाजी के सुयश सुनता गाता है, उसको फिर कभी भूलता नहीं, उसका जी चाहता है कि "सदा आपके यश गाया ही करूँ॥" (७६) श्री ६धनाजी (और एक विप्र)। (३६७) छप्पय । (४७६) धन्य धना के भजन को, बिनहिं बीज अंकुर भयो।घर आये हरिदास तिनहिं गोधूम खवाये। तात मातडर खेत थोथ लांगूल चलाये॥आस पास कृषिकार खेत की करत बड़ाई।भक्त भजे की रीतिप्रगट परतीति जुपाई॥अचरज मानत जगत में कहुँ निपुज्यौ, कहुँचे बयौ।धन्य धना के भजन को, विनहिं बीज अंकुर भयो॥६२॥ (१५२)