पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५४४

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44 .44-- 1 4 भक्तिसुधास्वाद तिलक । ................... में पड़े। प्रभु ने हृदय में लगा लिया। इस प्रकार धनाजी गृह में रह के गृह के कारण भी किया करते और भगवद्भजन भी॥ हमने जैसी संतों से सुनी थी वैसी इनकी कथा लिखके रख दी है। (७७) श्री ६सेनजी*। (३७१) छप्पय । (४७२) विदित बात जग जानिय, हरि भये सहायक “सेन" के ॥ प्रभुदास के काज रूप नापित को कीनौ । छिन छुड़हरी गही पानि दर्पन तहँ लीनौ ॥ तास तिहिं काल भूप के तेल लगायौ । उलटि राव भयौ शिष्य प्रगट परची जब पायौ ॥स्याम रहत सनमुख सदा,ज्यों बच्छा हित धेन के। विदित बात जग जानिये, हरि भये सहायक “सेन" के॥६३॥ (१५१) वात्तिक तिलक । ___ यह वार्ता विदित है, सम्पूर्ण जगत् जानता है, कि श्रीहरि श्री- "सेन” भक्तजी के सहायक हुए, किस प्रकार हुए सो सुनिये, अपने सचे दास का कारज करने के लिये प्रभु ने नापित (नाऊ) का रूप धारण किया और बहुत शीघ्र ही छुरा रखने वाली पेटी कंधे में टाँग. हाथ में दर्पण लेकर, सेनभक्त का रूप धर, बाँधौगढ़ वघेला के राजा वीरसिंह के पास तेल लगाने के समय जाके तेल लगाया, तथा दर्पण आदिक दिखाके सब सेवा की । राजा ने जब यह प्रभुकृत परचौ प्रगट जाना तब फिर वह श्रीसेन भक्तजी का शिष्य हो गया। देखिये, जैसे गऊ अपने बछड़े की प्रीति हितकार में सम्मुख तत्पर रहती है वैसा ही भक्तवत्सल श्यामसुन्दर श्रीरामजी अपने भक्तों के हितकार में सम्मुख तत्पर रहते हैं । प्रभु ने इस प्रकार श्रीसेन भक्त की सहायता की॥ विक्रमी पन्द्रहवी शताब्दी में