पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५१

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10m . . . . . . . . . . . . नबना + H. श्रीभक्तमाल सटीक । चित्त में यह फुरा कि देवी के मन्दिर में बहुत से काष्ठ लगे हैं सो ले आऊँ।” ऐसा विचार कुल्हाड़ी लेकर शक्ति भगवती का गृह आप उजाड़ने लगे । श्रीदेवीजी प्रत्यक्ष होकर बोली कि "हे श्रीराम- भक्तजी! आप हमारा घर मत गिराइये, मैं आपको नित्य लकड़ी दिया करूँगी।" आपने कहा “बहुत अच्छा" और चले आये । तब श्रीदेवीजी रात्रि में नित्य एक बरही (बड़े बोझ भर) लकड़ी आपकी कुटी में डाल जाती थीं॥ इस वार्ता को एक पड़ोस का रहनेवाला मनुष्य जानकर वह भी आपके समान लकड़ी लेने की इच्छा कर, श्रीदेवीजी का गृह उजाड़ने लगा, श्रीभवानीजी उसके शरीर में प्रवेश कर व्याप्त हो भूमि में पछाड़, प्राण लिया चाहती थीं, बहुत विलंब देख उसके घर के लोग जा देखें तो वह मरणप्राय हो रहा है, तब सबों ने श्रीदेवीजी की बड़ी प्रार्थना की। श्रीदेवीजी उसी के भीतर से बोली कि “यह यदि नरहरियानन्दजी को वैसी ही लकड़ियों का बोझ नित्य दिया करै, तब तो छोडूगी नहीं तो मार डालूगी।"उस दिन से देवी की बेगार उसी के सीस पड़ी, नित्य श्रीनरहरियानन्दजी को लकड़ी दिया करता था। (८२) श्रीलड्डूभक्तजी।। ऐसे ही श्रीभागवत में "श्रीजड़भरतजी" और श्रीभद्रकाली का प्रसंग लिखा है, और उसी.प्रकार श्री "लड्डू" भक्तजी का॥ • श्रीजड़भरतजी की कथा सिन्ध सौवीर देश के राजा रहू- गण के साथ लिखी जा चुकी है कि "श्रीजड़भरतजी" महाराज जंगल में बैठे भगवत्स्मरण कर रहे थे । भिल्लों के एक राजा ने भद्रकाली नाम अपनी इष्ट देवता को बलि देने के लिये एक लड़के को मोल लिया था, उस लड़के को किसी से ज्ञात हो गया कि मुझे बलि देने को मोल लिया है इसी से वह लड़का रात्रि के समय भाग गया। राजा ने उसको ढूँढ़ने के लिये लोग भेजे । उस लड़के को तो राजा के जनों ने नहीं पाया, परन्तु "श्रीजड़भरतजी" ही को ले