पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५२

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HappyPM-44- भक्तिसुधास्वाद तिलक । आये आप तो परमहंस थे ही, शांतभाव से दुष्टों के संग चले श्राए॥ __ जब उनको विधिपूर्वक बलि देने के लिये राजा उपस्थित हुआ तो श्रीदेवीजी ने विचारा कि यद्यपि रामभक्त तो कुछ बोलेंगे नहीं, परन्तु "जो अपराध भक्त कर करई। रामरोषपावक सो जरई ॥" उसी अपने विग्रह में से श्रीकालिकाजी प्रगट हो दुष्ट के हाथ से खड्ग छीन उसी से सब दुष्टों को मार अपने गणों के हाथ में उनका सिर दे दे, स्वयं देवी श्रीजड़भरत- जी के आगे नाचने और उनको प्रसन्न करने लगी। श्रीभक्त और भगवत् को श्रीदेवीजी ने इस भाँति प्रसन्न किया ॥ श्रीजड़भरतजी तो आनंद की मूर्ति थे ही, श्रीसीताराम सीताराम कहते हुए पुनः जंगल में चले गए। "श्रीलड्रड स्वामीजी" एक समय बंगाले के मध्य एक कुदेश में गए, वहाँ लोग आपको दुर्गाजी की बलि देने को ले गए। कालीजी क्रोधाग्नि से तप्त हो खड्गले दुष्टों को मार श्रीलड्डूस्वामी की रामभक्ति की प्रशंसा करने लगीं। यह देख सुन, सब ग्रामवासी भगवद्भक्त हो गए ॥ (८३) श्रीपद्मनामजी *। (३७८) छप्पय । (४६५) "कबीर" कृपा तें परम तत्त्व, “पद्मनाभ” परचौ लह्यौ । नाम महानिधि मंत्र. नामही सेवा पूजा जप तप तीरथ नाम, नाम विन और न दूजा॥नाम प्रीति नाम बैर नाम कहि नामी बोलै ॥ नाम "अजामिल” साखि, नाम बंधन ते खोले। नाम अधिक रघुनाथ ते "राम" निकट "हनुमत" कह्यौ।“कबीर" कृपा ते परम तत्त्व, “पद्मनाभ परचौ लह्यौ ॥६८॥ (१४६) आप संवत् १५७४ के लगभग वर्तमान थे।