पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५३

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श्रीभक्तमाल सटीक । • वात्तिक तिलक। (अब तक स्वामी अनन्त श्रीरामानन्दजी के चेलों का यश वर्णन था।) अपने गुरुदेव श्रीकबीरजी की कृपा से श्रीपद्मनाभजी ने परम तत्त्व, परब्रह्मस्वरूप भूत श्रीराम नाम से परची पाया, क्योंकि आप बड़े ही श्रीरामनामानन्य एक तत्त्वाभ्यासी हुए, आपने श्रीरामनाम महा- निधि ही को परम मंत्र मान जप किया, और श्रीरामनाम ही की सेवा पूजा की। दो०-"राम नाम आनादि ब्रह्म, सुमिरे शंकर सेस । ____ राम चरण साँचा गुरू, यो देवै उपदेस ॥" और तंत्रशास्त्र की विधिपूर्वक जप तथा पंचाग्नि आदिक तप, पृथ्वी भर के तीर्थ, सब भाप श्रीरामनाम ही को जानकर प्रेम करते थे ।। श्रीनाम को छोड़, और कोई दूसरा साधन मनही में न लाते थे। श्लोक "तेन तन हुँत दत्तमेवाखिलं तेन सर्व कृतं कर्मजालम् । येन श्रीरामनामामृतं पानकृतमनिशमनवद्यमवलोक्यकालम् ॥ दो० "राम नाम सुमिरन भजन, नामहि पूजा प्रेम। तप, तीरथ, दानादि सब, नाम योग, सुख, छेम॥" नाम ही से तथा श्रीरामनामानुरागी ही से. प्रीति करते थे। और जो नाम से विमुख जीव थे उन्हीं से वैर विरोध करते थे. अथवा जब किसी से वैर विरोध हो जाता था, तब नाम ही स्मरण करते थे। नामी जो परब्रह्म परमात्मा श्रीरामचन्द्रजी हैं उनको भी नाम ही कहके वोलते थे॥ (क) “मूल रेफ ब्रह्म, ताते कारन सुछम थूल, तीन हूँ अकार सतचित मुद ग्राम है। रेफ राम मिलित सिया सनेह नादरूपा दीरघ अकार स्वर विद्या अभिराम है ॥ व्यंजन मकार थूल, माया बिन्दु, जीवा नन्द, संजुत प्रकार जीव बदै रसराम है । सब नाम रामही के मानि के करें प्रणाम, जपै "राम" नाम जानि जीव ब्रह्मधाम है ॥" .