पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५४

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- 4- mutatute 1-1- ना ++ tee 1-11-00 ++11 MMH-1-1- - भक्तिसुधास्वाद तिलक । ___ श्रीभगवत् नाम में अजामिल साक्षी है, अर्थात् अपने पुत्र के बहाने से “नारायण" नाम लिया इसी से नाम ने भव-बंधन तथा यमपाश- बंधन से छुड़ा दिया। देखो, श्रीधर्मराज अजामिल प्रसंग ॥ • साक्षात् श्रीरघुनाथजी के प्रति हनुमानजी ने कहा है कि "हे प्रभु! आपका नाम आपसे भी बड़ा है, क्योंकि आप तो केवल अयोध्या- वासी प्रजा ही मात्र को अपने परमधाम को ले गये, और आपके नाम तीनों लोकों के जीवों को परमधाम ले जाते हैं । श्लोक "राम त्वत्तोऽधिकं नाम इति मे निश्चिता मतिः। त्वयैका तारिताऽयोध्या नाम्ना तु भुवनत्रयम् ॥ १॥" , इस प्रकार श्रीकवारजी की कृपा से पद्मनाभजी ने परमतत्त्व का परची पाया ॥ (३७९) टीका । कवित्त । (४६४) कासीवासी साहु भयो कोदी, सो निवाह कैसे, परिगये कृमि चल्यो चूड़िवे कों, भीर है । निकसे “पदम” पाय, पूछी ढिग जाय, कही गही देह खोलो गुन न्हाय गंगा नीर है ।। "राम नाम कहै देर तीन मैं, नवीन होत," भयोई नवीन कियौ भक्ति मति धीर है। गयौ गुरु पास, “तुम महिमा न जानी, अहो ! नाम भास काम कर” कही यों कवीर है ॥३११॥ (३१८) वात्तिक तिलक । एक काशीवासी सेठ कोढ़ी हो गया और उसकी देह में कीड़े भी पड़ गये, उसने किसी प्रकार से जीने में अपना निर्वाह न देखा, तब उसने कहा कि “हम श्रीगंगाजी में डूब जायँगे," उसके घर के और बहुत से लोग लेकर गंगातट गये । उसी समय उसके भाग्य- वश श्रीपद्मनाभजी वहाँ आ पड़े, और पूछा कि क्या है ?” लोगों ने सब कह दिया कि “यह कोढ़ी डूब मरता है।" आपने आज्ञा दी कि "इसके बंधन, और पापान आदिक, छोड़ दो, यह गंगास्नान कर यह संकल्प मन में करे, कि “मैं जन्म भर श्रीरामनाम जपूँगा" तीन वार श्रीरामनाम कहे, अभी अभी इसकी नवीन काया हो