पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५५

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Mota . . . . . ammar न-- pani+ M A श्रीभक्तमाल सटीक । जावेगी।" वैसा ही किया, श्रीरामानुरागी की कृपा से उसका नवीन शरीर हो गया, कुष्ठ छूट गया। तदनंतर उसने जन्म भर भक्तिपूर्वक श्रीरामनामस्मरण किया। . श्रीपदुमनामजी अपने गुरु श्रीकवीरजी के पास आये, श्रीकबीरजी यह वातों सुन कहने लगे कि “तुमने श्रीरामनाम की महिमा नहीं जानी, कुष्ठ तो श्रीराम नाम का आभास मात्र नाश कर देता।" तब पद्मनामजी ने अति आश्चर्य को प्राप्त हो श्रीनाम का प्रभाव जाना ।। (क) “कोऊ एक जमन जरठ मग जात कहूँ, सूकर के सावक ने माखो ताहि धाय के जोर सों पुकाखो “मोहिं माखो है हराम' जाति, ऐसे कहि योग प्रान गए अकुलाय के ॥ गोपद समान भव- सागर सों पार गयो, नाम के प्रताप ऐसो पद कयौ गाय के। प्रेम सों कहेगो कोऊ नाम, कृपा राम, कौन अचरज रामधाम देतु है जो चाय कै॥" (चैता) "सखी नैहर में, काहे फिरति बोरानी, ए रामा, सखी नैहर में । खेलत खात-रात दिन बीते रहियै सदा न जवानी, ए रामा ॥ इधर से भाव उधर चलि जावै करि रहु कोटि जतनवा, ए रामा। धन सम्पति कहिं ठहरै न आली, करि लेहु राम भजनवा, ए रामा॥" (८४)श्रीतत्वाजी।(८५) श्रीजीवाजी। (३८०) छप्पय । (४६३) • “तत्वा" "जीवा” दक्षिण देस बंसोडर राजत बि- दित ॥ भक्ति सुधा जल समुद्र भये बेलावलि गाढ़ी। पूरब जा ज्यों रीति प्रीति उत्तरोत्तर बाढ़ी ॥ रघु- कुलसदृश सुभाव, सिष्ट गुण, सदा धर्म रत । सूर, धीर, उदार, दया पर, दक्ष, अनन्य ब्रत ॥ पदमखंड आभास अर्थात् जैसे जमन ने "हराम" कहा पूर्वजा दो पहर के पीछे की छाया अर्थात पश्चिम सूर्य थाने से पूर्व में प्रगट होने वाली बढ़ती हुई छाया ।।