पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५६

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MAHair...RAMMA + -+ - + - - - - भक्तिसुधास्वाद तिलक। “पदमा पद्धति" प्रफुलित कर सविता उदित। “तत्वा" "जीवा" दक्षिणदेस बंसोडरराजत बिदित॥६६॥ (१४५)। वात्तिक तिलक। श्रीरामभक्त “तत्वाजी” तथा “जीवाजी" दक्षिण देश विप्र कुल में अपने वंश भर के उद्धार करनेवाले, जगत् विदित दोनों भ्राता विराज- मान हुए। दोनों भाई भक्तिसुधा जल समुद्र के दोनों तट की दृढ़ वेलावली (मर्यादा) हुए, और सन्त भगवन्त में दोनों भाइयों की प्रीति रीति उत्तरोत्तर कैसी बढ़ी कि जैसे दो पहर के पीछे की छाया उत्तरोत्तर बढ़ती है। आप दोनों, रघुकुलमणि श्रीरामचन्द्रजी के खरे खरे पूरे दास थे, इससे रघुवंशियों के ऐसा शुद्ध सुभाव, श्रेष्ठगुण, सदा धर्म में प्रीति, लोक परलोक के शत्रुओं के लिए शूर, तथा धीर, उदार, दयापरायण, अति प्रवीण, और अनन्य व्रतयुक्त थे॥ "श्रीपद्मापद्धति" जो श्रीसम्प्रदाय, सोई कमल के वन सरीखा है, सो उसको प्रफुल्लित करनेवाले दोनों भाई मानों दो सूर्य उदित हुए। इस प्रकार के निज वंशोद्धारकारक श्रीतत्वा जीवा भक्त हुए। श्लो. “प्रारंभगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लध्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् । दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्नालायेवमैत्री खलसज्जनानाम् ॥१॥" (३८१) टीका । कवित्त । (४६२) तला, जीवा, भाई उभे, विष साधु सेवा पन, मन धरी बात, तातें शिष्य नहीं भये हैं । गाइन्यौ एक ढूंठ बार, होय अहो हरी डार, संत चरणामृत को ले के डारि दये हैं ॥ जब ही हरित देखें, ताको गुरु करि लेखे, श्राये श्रीकबीर, प्रजि अास, पाँव लये हैं। नीठ नीठ खल्लों और सन्जनों को मित्रता ऐसी घटती बढ़ती जाती है जैसी कि दिन के पूर्वार्द्ध तथा परार्द्ध की छाया घटती बढ़ती है।