पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भक्तिसुधास्वाद तिलक। वात्तिक तिलक। भगवान श्रीकृष्णचन्दजी प्रति अभिराम महन्त की देह धारण कर "श्रीकृष्ण चैतन्य" नाम से जगद में प्रगट हुए। जितना गौड़ बंगाल देश था उसमें कोई लेश मात्र भक्ति न जानता था, वहाँ के लोगों को "हरि हरि" नाम जपना उपदेश कर प्रेमसागर में डुवा दिया । सो० "सकल तत्त्व को सार, अकथ अनूपम, रामहित । __"प्रेम" अतर्क अपार, परनि सकै सो कौन अस?" आपके शिष्य पशिष्यादि अनेक शिरमौर हुए, कि एक एक महानुभाव ने जगत् के अनेक लोगों को तार दिया। उनकी साक्षी पुस्तकों में लिखी धरी हैं। जिनकी दुष्टता पै कोटिन अजामील सरीखे पापियों को न्याछोवर कर दीजिये, वैसे दुष्टों को भी प्रेम में मग्न कर भक्ति भूमि भर में भर दिया। (६०) श्रीसूरजी। (४०५) छप्पय । (४३८) "सर" कवित मुनि कौन कवि, जो नहिं सिर चालन करै। उक्ति, चोज, अनुप्रास, बरन अस्थिति, अति भारी। चन प्रीति निर्वाह, अर्थ अद्भुत तुक धारी। प्रतिबिंबित देबि दिष्टि हृदय हरि लीला भासी। जनम करम गुन रूप सबै रसना परकासी ॥ बिमल बुद्धि गुन और की, जो यह गुनश्रवननिधरै। "सर" कबित मुनि कौन कवि, जो नहिं सिर चालन करै ॥७३॥ (१४१) ' ___ वात्तिक तिलक । ऐसा कौन कवि है ? कि जो श्रीसूरदासजी का कवित्त सुनकर

  • भक्तमाली पण्डित उपाध्याय श्रीरामहित शर्मा, रामपूर, नगरा, सारन, छपरा।

श्रीसूरदासजी यही है। बहुत से लोग भ्रम से विल्वमंगलजी (छप्पय ४६ ) को . ..