पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५७७

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d + 4 + ५५८ श्रीभक्तमाल सटीक । प्रशंसापूर्वक अपना सीस न हिलावै । उनकी कविता में बड़ी भारी नवीन युक्तियाँ, चोज, चातुर्य, बड़े अनूठे अनुमास, और वर्षों की यथार्थ बड़ी भारी स्थिति है । कवित्त के आदि में जिस प्रकार का वचन तथा प्रेम उठाया उसका अंत तक निर्वाह किया । और कविता के तुकों में अद्भुत अर्थ धरा है । आपके हृदय में प्रभु ने दिव्य दृष्टि दी जिसमें सम्पूर्ण श्रीहरिलीला का प्रतिविम्व भासित हुया । सो प्रभु का जन्म तथा कर्म और गुण, रूप सब दिव्य दृष्टि से देखकर अपनी रसना, (जीम) वचन से प्रकाशित किया। जो और कोई जन श्री ५ सूर कथित भगवद्गुण गण अपने श्रवण में धारण करें तो उसकी भी बुद्धि विमल गुण युक्त होजाय । कहते हैं कि आपने सवालाख भजन (पद) का अपने मन में संकल्प किया था, पर लाख ही बना के शरीर त्यागा, श्रीकृष्ण भगवान ने स्वयं पच्चीस सहस्र कहके उस ग्रंथ को और अपने भक्त की वासना को पूरा कर दिया ॥ श्रीसूरदासजी की दिव्यदृष्टि की परीक्षा भी राजसभा में हुई थी। दो० "किधौं सूर को शर लग्यौ, किधौं सूर की पीर। किधी सूर को पद सुन्यो, यों सिर धुनत अधीर ।" "सूर सूरतुलसी शशी, उड्डगन केशवदास । अब के कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश ।। जो पच्चीस सहस्र भजन श्रीकृष्ण भगवान् ने कृपा करके रचा है उन भजनो से सुरश्याम की छाप दिया है। कृपा की जय । सूर्य ।। श्रीसूरजी ने अकवर, जहाँगीर, शाहजहाँ, तीनो के समय देखे थे। आपका समय प्राय सवत् १६१७ से १६९९ तक के लगभग' कहा जाता है। ("ललिता । तोहिं बूझत शाहजहाँ । ऊषय | तजि श्याम, तुम आए कहाँ ?") ("बाल्मीकि तुलसी भये, ऊधब सूर शरीर") (अक्रदर वादशाह संवत् १६६२ तक, जहागीर १६८४ तक, और १६८४ से शाहजहाँ था।) जैसा कि गोस्वामी श्री १०८ तुलसीदासजी ने भी कई बादशाहो के समय देखे थे, यह बात प्रसिद्ध ही है कि आपका समय १५८३ से १६८० तक रहा ।। दो० पढ्यो गुरू सन बीच शर ५, सन्त बीच मन ४० जान । गौरी शिव हनुमत कृपा, तब मैं रची चिरान ॥१॥" श्रीरामचरित मानस । श्रीतुलसीदासजी ।।