पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५८०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । वात्तिक तिलक । ___प्रथम अवस्था में श्रीकेशवभट्टजी ने दिग्विजय कर, सब पंडितों को हराय, बड़े बड़े विद्याबुद्धियुक्तों को जीतकर, भय उत्पन्न किया। चौडोल नामक पालकी पर चढ़े, बहुत से घोड़े हाथी मनुष्यों को संग लिये, प्रतिभा बुद्धि के रंग में रंगे, फिरते फिरते नदिया (नवदीप) शांतीपुर श्राये, वहाँ के ब्राह्मण बड़े बड़े पंडित नैयायिक श्रीकेशव- भट्टजी का प्रभाव देखकर डर गये। तब महाप्रभु श्रीकृष्णचैतन्यजी ने विचारकर, सुखदाई लीला विस्तार कर, श्रीगंगातीर जहाँ केशवभट्ट बैठे थे वहाँ श्रा, पास में बैठ, प्रणाम कर नम्रतापूर्वक बोले कि "आपका यश जगत् में छा रहा है, सो मेरे मन में इच्छा है कि आपकी कुछ शासंबंधी वाती श्रवण करूँ॥ (४०९) टीका । कवित्त । (४३४) । “लरिकान संग पढ़ौ, बातें बड़ी बड़ी गदौ, ऐ पै रदी कहीं सोई, सीलता पै रीमिय" "गंगा को सरूप कहो, "चाही हग मागे सोई," नये सौ श्लोक किये, सुनि मति भीजिये ॥ तामैं, एक कंठकरि, पढ़िक सुनायो "अहो बड़ो अभिलाष, याकी व्याख्या करि दीजिये। "अचरज 'भारी भयौ कैसे तुम सीखि लयो?" "दयो ले प्रभाव तुम्है, ताने दयौ जीजिये ॥३३४॥ (२६५) वात्तिक तिलक । श्रीकृष्णचैतन्यजी का वचन सुन केशवभट्टजी वाले कि “बालकों के संग तो पढ़ते हो, परन्तु वातें बड़ी बड़ी गढ़ते हो, अस्तु जो कहो सो हम कहें, क्योंकि शीलता पर हम प्रसन्न हैं।" आप बोले कि "श्रीगंगाजी का स्वरूप कहिये।” केशवभट्ट बोले कि "जो नेत्रों से । देखते हो सोई गंगाजी का स्वरूप है।" महाप्रभु ने कहा "नये श्लोक बनाइये ।।" तब भट्टजी ने १०० श्लोक बनाके सुनाये । महाप्रभुजी ने सुन, प्रसन्न हो, उसमें का एक श्लोक सुनाकर कहा कि “इसका अर्थ कहिये, मुझे सुनने की बड़ी अभिलाषा है।" भट्टजी ने आश्चर्ययुक्त