पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५८३

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लालन -- 9APN444MP4- श्रीभक्तमाल सटीक । में भरे अनुष्ठानादिक से श्रीसुदर्शनचक्रजी का प्रभाव उस नदी में, आकर उसी "विश्रांतघाट" के मार्ग में बरबटों के यंत्र का प्रभाव नष्ट कर, उसी के नीचे से निकले । देखकर बहुत से यवन दौड़ाकर कहने लगे कि “देखिये। अपना वन उधारकर आप मुसल्मान हैं।" श्रीभहजी ने शिष्यों को धाज्ञा देकर सब दुष्टों को ताड़ना कराया । भागकर सब दुष्ट, जो उनका सहायक सूबा ® था, उससे कहा, उसने बहुत सी सेना ( फौज) दी। भट्टजी ने श्रीसुदर्शन चक्रजी को स्मरण किया, उसी क्षण सबकी देह में आग लग गई, और शिष्य लोगों ने भी दुष्टों को युद्ध कर मारा । बहुतों को श्रीयमुना- जी में डुबा दिया। तब बचे हुए काजी और सूवा' चरणों पर पड़े, त्राहि त्राहि पुकार किया। आपने दुष्टता न करने की शपथ कराकर सबको छोड़ दिया। उनका यन्त्र मन्त्र आदिक सब तोड़ फोड़ जल में डुबाकर तब जिनको 'मुसलमान' बना लिया था, उन सबों को अपने प्रभाव से हिन्दु का चिह्न लौटाके, भगवन्नाम स्मरण करने का उपदेश दिया। इस भाँति मथुराजी में निष्कण्टक भगवद्भक्ति का प्रचार किया। . (६३) श्रीभट्टजी। (४१३ ) छप्पय । ( ४३० ) श्रीभट सुभट प्रगट्यौ अघट रस रसिकन मन मोद घन ॥ मधुर भाव समिलित ललित लीला सु बलित छवि ॥ निरखत हरखत हृदै प्रेम बरसत सु कलित कबि । भव निस्तारन हेतु देत दृढ़ भक्ति सबनि नित। जासु सुजस ससि उदै हरत अति तम भ्रम श्रम चित॥ आनन्दकन्द श्रीनन्द सुत श्रीषभानुसता भजन। श्रीभट सुभट प्रगट्यौ अघट रस रसिकन मन मोद घन॥७६ ॥ (१३८)

  • "सूबा" kihe=एक सुबे का शासक 11