पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५८९

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श्रीभक्तमाल सटीक । अर्पण करते, परिचर्या में तत्पर रहते थे। जिस प्रकार द्वापर में गोकुल और नन्दजी का घर था, उसी प्रकार आप जो तैलंग ब्राह्मण दीक्षित हैं उनका गृह शोभित होता रहा । जहाँ गोकुल में आपका गृह है वहाँ श्रीनन्दराय के घोष कहिये आभीरपल्ली का विभव प्रगट है जिसको देख चन्द्र, इन्द्र का भी मन मोहि जाता है । और क्या प्रशंसा की जाय, श्रीवल्लभाचार्यजी के पुत्र श्रीविठ्ठलनाथजी ने अपने भजन के बल से कलियुग में द्वापर कर दिया । (९७) श्रीत्रिपुरदासजी। (४१९) टीका । कवित्त । (४२४) ___ कायथ "त्रिपुरदास” भक्ति सुख राशि भयो, कसो, ऐसो पन सीत दगला पठाईये । निपट अमोल पट हिये हित जटि आवै तातें अति भावे, नाथ अंग पहिराइये ॥ आयो कोऊ काल नरपति मैं बिहाल कियो, भयो ईश ख्याल नेकु घर में न खाइयै । वही ऋतु आई, सुधि आई आँखि पानी भरि आई, एक दाति' दीठि बाई बेचि ल्याइयै ।। ३४०॥(२८६) वात्तिक तिलक। .. “श्रीत्रिपुरदासजी" का नाम यद्यपि श्रीनामास्वामीजी के मूल में छूट गया, तथापि "श्रीविठ्ठलनाथजी” के अति प्रिय शिष्य कृपापात्र होने से, श्रीटीकाकार प्रियादासजी ने आपकी टीका लिखी है ।। . श्रीत्रिपुरदासजी कायस्थ शेरगढ़-निवासी का हृदय सुखराशि भक्ति से भरा था, उन्होंने ऐसा प्रेमप्रण किया कि शीतकाल में "श्रीवल्लभाचार्यजी" के ठाकुरजी को दगला (रुईदार अँगरखा) सदा भेजा करते थे। वह अति बहुमूल्य वस्त्र बड़े प्रेम से गोटा, पट्ठा लगवाके भेजते थे। श्रीगुसाईजी को अति प्रिय लगता था, इससे अपने ठाकुर श्रीगोकुल- ... नाथजी के अंग में अवश्य पहिराया करते थे। परिवर्तनशीलता तो विदित ही है, कोई काल ऐसा श्रा प्राप्त हुआ कि राजा ने सब धन हर के आपको दुःखित कर दिया । कर्मप्रदाता ईश्वर का ऐसा १ "द्वाति"Lijs -दवात, मसियानी, कज्जलपात्र ॥