पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५९४

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५७५ .. Manantaramdha nt -- . NIPMAJMERMININE HOMM A lndiet भक्तिसुधास्वाद तिलक । पड़े कि एक बन्दर मात्र से तुम इतना डरते हो। तो किष्किन्धा लंका में बन्दरों की सेना के मध्य कैसे रहे !” हीर ने उत्तर दिया कि "हम भावग्राही भावप्रिय हैं, नहीं तो गुणातीत हैं ही, तुमको यदि ऐश्वर्य ही की वाता है तो माधुर्य उपासना क्यों ?” सुनकर महाराज बहुत लजित हुए । श्री "विट्ठलेश"सुत अर्थात् श्रीगोसाई बिट्ठलनाथजी के सातों पुत्र, सुहृदु साक्षात् श्रीगोबर्द्धनधर (श्रीकृष्णचन्द्र) को ध्यान धरना और उनके यश गाना चाहिये । सातों सरसशील, यशवीर, धीर, श्रीप्रभु के अनुराग में पगे, विवेकी, प्रभु के प्रगट विभूतिरूप, हरिभजन प्रवीण, और जगतारण हुए। (१)श्रीगिरिधरज, (५) श्रीरघुनाथजमहाराज, (२) श्रीगोविन्द, (६) श्रीयदुनाथजू, (३) श्रीबालकृष्णज, (७) श्रीघनश्यामज, (१) श्रीगोकुलनाथज, (६६) श्रीबालकृष्ण (कृष्णदास)जी। (४२४) छप्पय । (४१९) गिरिधरन रीमि कृष्णदास कौं नाम माँझ साझौ दियौ॥श्रीवल्लभ गुरुदत्त भजनसागर गुनागर । कबित नोख निर्दोष नाथसेवा मैं नागर॥बानी बंदित विदुष सुजस गोपाल अलंकृत। ब्रजराज अति आराध्य, वहै धारी सर्बस चित ॥ सांनिध्य सदा हरि दास बर्य, गौर श्याम दृढ़ व्रत लियौ। गिरधरनरीझिकृष्णदास को नाम माँझ सामी दियौ ॥८१॥(१३३) श्रीविठ्ठलनाथ गुसाई के सातो लडकों की सात गद्दियाँ बहुत बड़ी बड़ी है, सातों मे भगवत् मूर्तियां विराजमान थी। उनमे से [ आलमगीर औरंगजेब के समय, विक्रमी संवत् १७१४ । १७६४ के मध्य, ] एक मूर्ति को उदयपुर के राना और दूसरे स्थान की मूर्ति को जयपुर के महाराज अपने अपने यहाँ ले गए।