पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५९५

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५७६ श्रीभक्तमाल सटीक । वात्तिक तिलक । गिरिधारा श्रीकृष्णचन्द्र ने श्रीकृष्णदासजी पर रीझ के अपने नाम में साझी किया अर्थात् आपका नाम भी "कृष्ण" (बालकृष्ण व कृष्ण दास) रखवाया और भापके नाम का पद बनाया। श्राप गुरु श्रीवल्लभा- चार्य सम्प्रदाय के अनुसार जो भजन की रीति तिसमें पूरे और गुणागार हुए। पापकी कविता निर्दोष तथा अनोखी हुआ करती थी। आप छठे ही वर्ष से भगवत्सेवा में प्रवीण हुए। आपकी वाणी को पण्डित लोग भादरते और वन्दना करते थे कि जो अलंकृत तथा श्रीगोपालजी के सुयश से भूषित होती थी। आप श्रीब्रज की रज को बहुत ही आराधना और उसको धारण किया करते थे। भाप सबों से सुचिन्तित थे अथवा सब प्रकार से निश्चित रह भगवत् चिन्ता ही में लगे रहते थे, और सर्वदा महात्मा सन्तों के संग में रहा करते थे। श्रीराधाकृष्ण भजन का एक मात्र दृढ़ बन आपको था । (४२५) टीका ! कवित्त । (४१८) प्रेम रसरास कृष्णदासज प्रकास कियौ, लियौ नाथ मानि सो प्रमान जग गाइये । दिल्ली के बजार मैं जलेबी सो निहारि नैन, भोग लै लगाई लगी विद्यमान पाइयै ।। गग सुनि भक्तिनी को, भए अनुराग बस, ससिमुख लालजू को जाइकै सुनाइये। देखि रिझवार रीझ निकट बुलाइ लई, लई संग चले, जगलाज को वहाइयै ॥ ३४४ ॥ ( २८५) वात्तिक तिलक। श्रीबालकृष्णजी ने प्रेमरस की राशि प्रकाश की और आपके ठाकुर "श्रीनाथ” ने श्रापकी प्रेमनिष्ठा से अति.प्रसन्न भी हुए सो यह बात जग में प्रसिद्ध है, "प्रेमरसराशि” नाम एक ग्रन्थ भी बनाया । उसको प्रभु ने अंगीकार किया।