पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६०९

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श्रीभक्तमाल सटीक। ध्याये हैं । बोलिकै सुनावै इहाँ अमुको सरूप है जू, लीलाकुण्ड धाम स्याम प्रगट दिखाये हैं। ठौर ठौर रासके विलास लै प्रकाश किये, जिये यों रसिक जन कोटि सुख पाये हैं । “मथुरा" ते कही "चलो बेनी, पूछ "बेनी कहाँ ?” "ऊँचे गाँव" श्राप खोदि सोत लै लखाये हैं ॥ ३५६ ॥ (२७३) वात्तिक तिलक । श्रीनारायणभट्टजी ब्रजभूमिपरायण हुए, जिस ग्राम में जाते ब्रज का ही ध्यान किया करना ही आपका व्रत था, लोगों को बुलाकर बताते थे कि “यहाँ अमुक मूर्ति है, खोदो तो निकलै, यहाँ अमुक कुण्ड है, यहाँ अमुकधाम है,"और प्रगट दिखा भी दिया करते थे। ठौर ठौर रहस्य विलास प्रकाश करते कि यहाँ हरि ने अमुक लीला की है," जिस- को जानकर रसिकों को बड़ा ही आनन्द होता था । आपने कहा कि "श्रीवेणी तीर चलो।" लोगों ने पूछा कि “वेणी कहाँ है ?” आपने "ऊँचे गाँव" में उनको ले जा. पृथ्वी खोदवा, श्रीवेणीजी का स्रोत दिखा दिया । (१०८) श्रीबल्लभजी। (४४४) छप्पय । (३९९) व्रजबल्लभ "बल्लभ", परम दुर्लभ सुख नैननि दिये। नृत्य गान गुन निपुन रास में रस बरषावत। अब* लीला ललितादि बलित दम्पतिहिं रिमावत । अति उदार निस्तार, सुजस ब्रजमण्डल राजत । महा- महोत्सव करत, बहुत सबही सुख साजत । श्रीनारायण- भट्ट' प्रभु, परम प्रीति रस बस किये । ब्रजबल्लम बहूतेरे कहते है कि आप (श्रीवल्लभजी) श्रीनारायणभट्टजी के शिष्य थे । और और लोगो का कहना है कि दोनो परस्पर प्रेमी थे 1 आप श्रीनाभा स्वामी के समय मे, और विक्रमी सवत् १६३२. सन् १५७५ ईसवी के लगभग वर्तमान थे। उस समय के बादशाह की सम्मति लेकर श्रीनारायणभट्टजी की सहायता पाकर आपने रहस्य-नीला के महोत्सव का प्रकाश किया।