पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६१०

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A HAMARHemathemamanenta l Namama -00-KAMAMMAJanuaH भक्तिसुधास्वाद तिलक । "बल्लभ,” परम दुर्लभ सुख नैननि दिये॥८॥(१२६) वार्तिक तिलक। श्रीवल्लभजी ब्रजभूमि से बड़ी ही प्रीति रखते, और व्रजमण्डल के लोग भी आपसे बड़ी प्रीति करते थे, क्योंकि आपने सबके नेत्रों को श्रीरहस्यलीला का दुर्लभ सुख दिया था, नृत्य, संगीत, और और गुणों में आप प्रवीण थे, और रहस्यलीला में आप आनन्दरस की वर्षा किया करते थे । श्रीललितादि सखियों समेत श्रीराधाकृष्णजी को रिझाया करते थे। आप कलिजीवों के निस्तारक हुए। श्रीव्रजमण्डल में आज भी आपका सुयश छा रहा है । बड़े सुख साज के साथ, महामहोत्सव किया करते थे। श्रीवल्लभाचार्यजी ने श्रीनारायणभट्ट को, परम प्रीति से रस वश किया था ॥.... . ' (१०६) श्रीरूपजी। (११०) श्रीसनातनजी।* (४४५) छप्पय । (३९८) संसारस्वादसुख बांत ज्यों, दुहुँ “रूप,” "सनातन,” त्यागि दियौ ।गौड़देश बंगाल हुते सबही अधिकारी। हय गय भवन भंडार बिभौ भूभुज उनहारी ॥ यह सुखअनित्य बिचारि बास छंदावन कीन्हौ । यथालाभ संतोष कुंज करवा मनदीन्हौ ॥ ब्रजभूमि रहस्य राधा- कृष्ण भक्त तोष उद्धार कियो। संसारस्वादसुख बांत ज्यों, दुहुँ “रूप” “सनातन," त्यागि दियौ ॥८६॥ (१२५) वात्तिक तिलक । श्रीरूपजी तथा श्रीसनातनजी दोनों भाइयों ने संसारस्वाद के ' पर आप संवत् १६३० सन् १५७३ ई० कलिअब्द ४६७४ में वर्तमान थे। _ _