पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६११

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५९२ Munauldren t -numodanatandharamanar MIndiherranguaNPHP- श्रीभक्तमाल सटीका सब सुखों को उबान्त (वमन किये हुए) की भाँति परित्याग किया। आप गौड़देश बंगले के शासक के एक बड़े अधिकारी थे, आप दोनों भाई बड़े विभव वाले थे, हाथी, घोड़े, भवन भूमि, भंडार सब कुछ भूभुज (अवनीश) कैसे रखते थे । एक समय रुपये गिनते गिनते ही सारी रात व्यतीत हो गई। यह अनित्य सुख आपको ग्लानि तथा बड़ी विरक्ति का कारण हुआ। अपने गुरु श्रीनित्यानन्द- जी की आज्ञा से दोनों भाइयों ने श्रीवृन्दावन में वास किया । यथा- लाभसन्तोष यह आपमें पूरा था। केवल करखा कोपीन और श्री. वृन्दावन के कुंज के अतिरिक्त अन्य कुछ में आपने मन नहीं दिया। ब्रजभूमि के तीर्थों को और श्रीराधाकृष्ण भक्तसुखकारी के रहस्य को प्रकाश दिया ॥ (४४६) टीका । कवित्त । (३९७) कहत बैराग, गए पागि नाभा स्वामी जू चे, गई यो निवर तुक पाँच लागी ऑचि है । रही एक माँझ, धयो कोटिक कवित्त अर्थ, याही ठौर ले दिखायो कविता को साँचि है ॥ राधाकृष्णरस की प्राचा- रजता कही यामें, सोई "जीवनाथभट्ट" छपै बानी नाँचि है । बड़े अनुरागी ये तो कहियो बड़ाई कहा, अहो जिन कृपादृष्टि प्रेम पोथी बाँचि है ।। ३५७ ॥ (२७२) वातिक तिलक ! श्रीनामा स्वामी महाराज श्रीरूपजी श्रीसनातनजी के वैराग्य ही के वर्णन में, अपने छप्पय के पाँच तुक तक निवर गए, ऐसे अनुरक्ति विरक्ति के आवेश में आप पग गये। बचे हुए केवल एक ही तुक में श्रीस्वामीजू ने कोटि कवित्त के अर्थ रख दिये, कविता की सचाई और स्वरूप, ऐसे ही ऐसे ठौर में प्रगट होते हैं। श्रीराधा- कृष्णरस के प्राचार्य श्रीरुपजी श्रीसनातनजी हैं, यह श्रापकी प्राचा- यंता कही है इसी प्रकार श्रीजीवनाथभट्टजी के छप्पय में भी वाणी की चमत्कृति प्रगट है आप बड़े ही अनुरागी थे इसका कहना ही क्या है । श्रहो। जिनकी कृपाकटाक्ष से प्रेम की पोथी पढ़ी जाती है ।