पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६१७

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५९८ ImpodgMHAHIR.a.to.mb. HOMD1 ddromendrgetaripreputan rdan श्रीभक्तमाल सटीक । ५९.८..........श्रीभक्तमाल सटीक । (१११) श्रीहितहरिवंशजी। (४५३) छप्पय । (३९०) (श्री) हरिवंश गुस्साई भजन की, रीति सुकृत कोउ जानिहै । (श्री) राधाचरण प्रधान हृदै अति सुदृढ उपासी कुंज केलि दंपति, तहाँ की करत खवासी * ॥ समु महा प्रसाद प्रसिद्ध ताके अधिकारी । बिधि निषेध नहिं, दाम अनन्य उतकट ब्रत धारीव्यास- सुवन पथ अनुसरै, सोई भलै पहिचानि है । (श्री) हरिबंस शुसाई भजन की रीति सुकृत कोउ जानि है।॥०॥ (१२४) स. “आनन ओप भयङ्क लजावत भावत भाव भरी निपुनाई। त्यों जजजात लजात बिलोकत कोमब पाँयन की भरुनाई। श्रान की दुति कोटि अनङ्ग के अङ्ग की मोचति जेट निकाई। को ब्रजवल्लभ धीर धेरै लखि जानकीनाथ की सुन्दरताई ॥" ब्रजनन्दन सहाय (ब्रजवल्लभ) मसतियारपुरी . (शाहाबादी) विरचित सवैया। वात्तिक तिलक। गुसाईजी श्रीहितहरिवंशजी के भजन की रीति विरलय कोई जान सकता है। श्रीप्रिया प्रियतम के चरणों के उपासक थे। श्रीराधाजी को प्रधान मानते थे । आपके हृदय में अति सुदृढ़ भक्ति थी। दम्पति के कुंजलि के विशेष कैंकर्यभावना में सखीभाव से किया करते थे। श्रीमहाप्रसाद में श्रापका विश्वास प्रसिद्ध है, उसके बड़े अधिकारी थे क्योंकि महाप्रसाद को अपना सर्वस्व जानते थे। 'विधि निषेध' (सामान्यधर्म) पर चित्त न देकर, भागवतधर्म (विशेषधर्म) मालाकंठी अनन्य भक्ति का उत्कट ब्रत मन में रख- कर श्रीराधाकृष्ण की बड़ी भाग्यवती दासी रहे । श्रीव्याससुवन जेट-समूह। "खवासी "-विशेष कैकय ! "दाम"=माला! पाठान्तर "दास"