पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६३२

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-area-Hanumaananamann athamarami भक्तिसुधास्वाद तिलक । (४६८) छप्पय । (३७५) वृन्दावन की माधुरी, इन मिलि आस्वादन कियौ। सर्वस राधारमन “भटूट गोपाल" उजागर। "हृषीकेश," "भगवान, "विपुलबीठल” रससागर ॥ "थानेश्वरी जगन्नाथ,” "लोकनाथ महामुनि "मधु,” "श्रीरंग"। "कृष्णदास,” पंडित उभै अधिकारी हरि अंग ॥ "घमंडी," "युगलकिशोर भृत्य “भूगर्भ जीव हदव्रत लियौ । वृन्दाबन की माधुरी, इन मिलि आस्वादन कियौ ॥४॥ (१२०) ___ वात्तिक तिलक । श्रीधन्दावन की माधुरी का श्रास्वादन श्रीकृपा से इन महानुभावों को पास हयाः- १ श्रीगोपालमट्टजी । उजागर, जिनके सर्वस्व श्रीराधारमणजी २ श्रीअलिभगवान्जी। ३ बिट्ठलविपुलजी, रससागर। ४ श्रीजगन्नाथथानेश्वरीजी। ५ श्रीलोकनाथजी। ६ श्रीमधु गुसाईजी, महामुनि । ७ श्रीश्रीरङ्गजी। ८ श्रीकृष्णदास ब्रह्मचारीजी. अधिकारी। ६ श्रीकृष्णदास पंडितजी, हरि के अंग (मित्र)। १० श्रीभूगर्भजी व्रतवाले। ११ श्रीघमंडीजी। १२ श्रीयुगलकिशोर भृत्य। १३ श्रीजीवगोसाईजी। १४ श्रीहषीकेशजी॥