पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६४४

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६२५ भक्तिसुधास्वाद तिलक । वातिक तिलक । एक समय आपकी वाटिका में संतों का समाज विराजमान था, आप दर्शन के लिये गये, एक वेषधारी नारियल (हुक्का) पी रहा था, पापको देख संकुचित हो, नारियल (हुक्के को) छिपा दिया, आप अपना बड़ा अपराध मान, उस साधु का सन्मान करने के लिये, झूठही पेट थाम (पकड़) घूमकर बैठ गए, और एक दास से कहने लगे कि “मेरे पेट में बड़ी पीड़ा उठी है, कहीं, (हुक्का) नारियल चिलम मिले तो यह उससे अच्छा हो।" सेवक को कहा कि "देखो किसी संत के पास हो तो ले आओ” वह सेवक सब संतों से पूछने लगा कि "किसी के पास पीने की तमाखू होय तो दीजिये।" वह पीनेवाला जो संकुचित हुआ था सो बड़ा प्रसन्न हो, आगे ले श्राया। आप झूठेही पीने की भाँति उसाँस (क) लेकर मानो उसको पानकर पीड़ा रहित हो गये । इस प्रकार आपने संका सोच दुःख हरके उस साधु को प्रसन्न किया ॥ (४८३) टीका | कवित्त । (३६०) उपजत अन्न गाँव, आवै साधुसेवा ठाँव, नयौ नृप दुष्ट प्राय काँव काँव कीयौ है । प्रामसो जवंत कस्खो करचो लै बिचार श्राप स्यामानन्दजू मुरारि पत्र लिखि दियौ है । जाही भाँति होहु ताही भाँति उठि श्रावौ इहाँ आये हाथ बाँधि करि अचै? न लिया है। पाछे साष्टांग करी करी लै निवेदन सो भोजन में कही चले आये माज्यौ हियो है ॥३८॥ (२४१) वातिक तिलक । स्थान के संबंध में एक ग्राम था, उसमें खेती से बहुत सा अन्न उत्पन्न होता था जिससे स्थान में संतसेवा होती थी। दैववश एक नया दुष्ट राजा हुआ, उसने बहुत से दुर्वचन बोल, ग्राम ले लिया। १"जवत करयो"=hre रोक लिया, ले लिया । २ जैसे एक स्त्री प्रियतम पति की आशा सुनकर मूसल को ओखली के ऊपर आकाश में ही छोड़कर दौड़ी, तथा दूसरी स्त्री डोरी को कुएँ मे से विना निकाले छोड़ आ पहुंची। (दोनो के मूसत. डोरी डोल वैसेही अधड़ में रामकृपा से उँगे रहे)।