पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

man श्रीभक्तमाल सटीक 1 चौपाई। "संत विटप, सरिता, गिरि, धरनी । पर हित हेतु सवनि की करनी॥" यती रामरावल्लजी, श्यामजी, खोजीजी, संतसीहाजी, दलहाजी, पद्मजी मनोरथजी, राँकाजी, श्रीराम नाम जपनेवाले धौगूजी, जाड़ा. जी, चाचागुरुजी, सवाईजी, चाँदाजी, नापाजी, सत्य सत्य यथा नाम तथा गुण युक्त पुरुषोत्तमजी और चतुरजी, जिन्होंने अपने मन का ममत्व और अपनपी मिटा डाला ऐसे कीताजी, इन सब भक्तों की अति सुन्दर बुद्धि हुई, और परिश्रमरूपी “धीधांग" अर्थात मृदंग के तालके साथ, संसार की गति में ये भक्त नहीं नाचे । १ श्रीरामरावल्लजी 10 श्रीजाड़ाजी २ श्रीश्यामजी ११ श्रीचाचागुरुजी ३ श्रीखोजीजी १२ श्रीसवाईजी ४ श्रीसीहाजी १३ श्रीचाँदाजी ५. श्रीदलहाजी १४ श्रीनापाजी ६ श्रीपद्मजी १५ श्रीपुरुषोत्तमजी ७ श्रीमनोरथजी १६ श्रीचतुरजी ८ श्रीराकाजी १७ श्रीकीताजी ६ श्रीद्योगूजी (१२७) श्रीखोजीजी। (४९६) टीका । कवित्त । (३४७) “खोजी" जू के गुरु हरिमावना प्रवीन महा, देह अंत समै बाँधि घंटा सो प्रमानिये । “पा प्रभु जब तब बाजि उठे, जानौ यही," पाये, पन बाजी, बड़ी चिंता मन बानिये ॥ तन त्याग बेर नहीं हुते, फेरि पाछे आये, वाही ठौर पौढ़ि देख्यौ, आँव पक्यौ मानिये । तोरि, ताके टूक किये, छोटो एक जंतु मध्य, गयो, सो विलाय, वाजि उठी जग जानिये ॥ ३६६ ॥ (२३०) त्तिक तिलक । "खोनीजी" के श्रीगुरुदेवजी श्रीरामजी के ध्यान भावना में बड़े