पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६५८

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M ring-Innoneem Monda भक्तिसुधास्वाद तिलक। माँझ संपति निहारिये । जानी यों जुबति जाति, क, मन चलि जाति, याते बेगि संभ्रम सों धरि वापै डारिये ॥पछी “अजू ! कहा कियो भूमि में निॉरि तुम "कही वही बात, बोली “धनहूँ विचारिय"। कहै मोसों राँका ऐपै बाँका अाज देखी तुही, सुनि प्रभु बोले बात साँची है हमारिये ॥ ४०॥ (२२७) वात्तिक तिलक । आगे राँकाभक्तजी पीछे उनकी पत्नी दोनों उसी मार्ग में आये, भक्तजी ने औचक ही देखा कि मार्ग में द्रव्य की थैली पड़ी है । विचार किया कि "श्री की जाति है कहीं मन चल न जाय,” इसलिये बहुत शीघ्रता से धूल लेकर उस पर डाल दी। उनकी पत्नी आकर पूछने लगी कि “आपने यहाँ पर झुककर क्या किया है ? ॥" आपने वही बात कह दी। श्रीभक्तिवतीजी बोली "कि आपके मन में अभी धन का ज्ञान बना ही है ?" सुनकर, प्रसन्न हो, कहने लगे कि मुझको तो तब "रॉका" कहते हैं, परन्तु आज मैंने जाना कि तू सच "बाँका" है । दोनों की दशा देख वचन सुन नामदेवजी से प्रभु बोले कि "देखो, मेरी बात सत्य है कि नहीं?"शान्ति और विराग की जय ॥ (५००) टीका । कवित्त । (३४३) नामदेव हारे हरिदेव कही और वात, जो पै दाह गात, चलो बकरी सकेरिय । श्राये दोऊ वीनिये को देखी इकठौरी ढेरी बैहूँ मिलि पावे तऊ हाथ नहिं छेरियै ।। तब तो प्रगट स्याम ल्याये यों लिवाय घर, देखि मूंड फोरौ कयौ ऐसे प्रभु फेरियै । विनती करत कर जोरि अंग एटधारी भारी बोझ पखौ लियो चीरमात्र हेरिये ॥ ४०३॥ (२२६) वात्तिक तिलक। जब भगवान ने कहा कि "देखो मेरी ही बात सच्ची निकली," तब श्रीनामदेवजी ने हार मानी। फिर प्रभु बोले कि “जो कदाचिद इनके परिश्रम का तुम्हें बड़ा ही संताप है, तो चलो, दोनों जने लकड़ियाँ चुन । चुन कर इकट्ठा रख दें, ये दोनों जने ले जायेंगे परिश्रम थोड़ा होगा।"