पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६५९

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६४० - --+ + + + + Hending - - श्रीभक्तमाल सटीक। श्रीकृष्णचन्द्र और नामदेवजी ने ऐसा ही किया, जब राँका वाँका लकड़ी चुनने आये तब देखें कि बहुतसी लकड़ी इकट्ठी धरी हैं । दोनों ने उन लकड़ियों में हाथ तक नहीं लगाया, यहाँ तक कि दो लकड़ी भी कहीं इकट्ठी मिलें तो दूसरे की धरी हुई जान वे उनको नहीं छूते थे, तब श्यामसुन्दरजी प्रगट होकर दोनों को घर में लिया लाये और प्रभु तथा नामदेवजी ने कहा “तुम हठ छोड़कर कुछ तो लो ।" भक्तों ने प्रार्थना की कि जो "आपसे कुछ चाहना कर लेवे, सो प्राणी तो 'मुँडफोरा' है, वह भक्त काहे को है, और ये नामदेवजी भी मुड़फोरा' सरीखे आपको वन वन में फिराते हैं।" यह सुन, नामदेवजी ने हाथ जोड़ विनय किया कि “प्रभु की आज्ञा मान भला एक एक वन तो शरीर में धारण कर लीजिये," तब तो दोनों के सीस पर बड़ा ही भार पड़ा, परवनमात्र ले लिया। ऐसे अचाही निष्काम भक्तों की जय ॥ दो. "जाहि न चहिये कबहुँ कछु, तुम सन सहज सनेह । बसहु निरन्तर तासु उर, सो राउर निज गेह ॥" ___(५०१) छप्पय । (३४२) पर-अर्थ-परायन भक्त ये, कामधेनु कलियुग्ग के॥ लक्ष्मणं, लफरा, लई, सन्त जोधपुर त्यागी । सूरज, कुम्भनदास, बिमानी, खेमे बिरागी॥भावन, विरही भरत, नफर, हरिकेस, लटेरा । हरिदास, अयोध्या चक्रपानि (दियो) सरजू तट डेरा ॥ तिलोक, पुखरदी, बिजुली, उद्धव, बनचर बंस के। पर-अर्थ-परायन भक्त ये, कामधेनु कलियुग के ॥ ६८॥ (११६) वात्तिक तिलक 1 कलियुग के ये श्रीभगवद्भक्त, पराये अर्थ साधने में तत्पर और कामधेनु के समान मनोरथ के दाता हुप-