पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६६०

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Aurat imemurartara-Homen+taminaimameranaarietient- भक्तिसुधास्वाद तिलक । १ श्रीलक्ष्मणभक्तजी ११ श्रीनफरजी २ श्रीलफराजी १२ श्रीहरिकेशजी ३ श्रीलड्डूजी लटेरा वंश में उत्पन्न ४ श्रीत्यागीसन्त १३ श्रीहरिदासजी, और जी जोधपुर के १४ श्रीअयोध्या सरयूतटवासी ५. श्रीसूरजभक्तजी चक्रपाणिजी ६ श्रीकुंभनदासजी १५ श्रीतिलोक सुनारजी ७ श्रीविमानीजी १६ श्रीपुखरदीजी ८ श्रीखेमबैरागीजी १७ श्रीविजुलीजी और श्रीभावनजी १८ श्रीउद्धवजी, वनचर (हनु- १. श्रीविरहीभरतजी मान वंश) में उत्पन्न । (१३०)श्रीलड्डूभक्तजी। (५०२) टीका । कवित्त । (३४१) लड्डूनाम भक्त, जाय निकसे विमुख देस, लेसहूँ न सन्तभाव जान, पाप पागे हैं। देवी को प्रसन्न करें, मानुस को मारि धरै, ले गये पकार, तहाँ मारिबे को लागे हैं। प्रतिमा को फारि, विकरार रूप धरि आई, ले के तरवार मूंड कादे, भीजे बागे हैं। आगे नृत्य कर, हग भरै साधु पाँव धरै, ऐसे रखवारे जानि जन अनुरागे हैं ॥ ४०४ ॥ (२२५) बातिक तिलक। लड्डनामके भगवद्भक्त, विचरते हुए बंगाले प्रदेश के एक विमुख ग्राम में पहुँचे, वहाँ के लोगों की संतों में भावभक्ति किंचित् भी न

  • कोई इसका अर्थ यो करते है कि सन्त ने जोधपुर को त्यागा । श्रीभक्तमालजी की

नामावली नही प्राप्त होने से नामो का ठीक पता लगाने में जो कठिनता होती है, भक्तमाली ही लोग जानते है ॥ ___ यह कथा पूर्व ही मे प्रसंगतः लिखी जा चुकी है । "कुर्वानी तथा जीवबलि की प्रथा विचित्र ही बात है, "इन दुहुँ राह विगाड़ी साधो, इन दुह राह बिगारी । आपस मे दोउ ( हिन्दू-मुसलमान ) लड़े मरत है, भेद काहू नहिं जाना ॥ "महम हो सो जानै साधो, ऐसा देस हमारा है । कर नयनों दीदार, महल में प्यारा है ।।