पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६६१

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+-+ -+14+++++ IMAvenueneu r+ ann ६४२. ...........श्रीभक्तमाल सटीक ।। श्रीभक्तमाल सटीक । थी, केवल पाप में ही परायण थे। मनुष्य को मार बलिदान देकर देवी को प्रसन्न करते थे। लड्डूभक्तजी को अकेले देख, पकड़कर, खड्ग ले मार डालने को उद्यत हुए। उनकी दुष्टता देख श्रीदेवीजी ने अपनी प्रतिमा फोड़, विकरालरूप धारण कर, प्रगट हो, खड्ग बीन, गई दुष्टों के सास काट डाले, और दुष्ट भाग गये । तव देवी श्रीलड्डूभक्तजी के आगे नेत्रों में प्रेम के धाँसू भरकर नाचने लगी, संत के चरणों को पकड़कर प्रसन्न वि.या। सब देवी देवताओं के अंतर्यामी श्रीरामजी को ऐसे रक्षा करनेवाला जानकर, भक्त लोग सानुराग भजते हैं, कृपा को समझ प्रेम- मग्न होते हैं । सब ग्रामवासी भगवद्भक्त हो गए। (१३१) श्रीसन्तजी। ( ५०३ ) टीका | कवित्त । ( ३४० ) सदासाधुसेवा अनुरागरंग पागि रह्यो, गह्यो नेम भिक्षा बव गाँव गाँव जाय । श्राये घर संग पूछ तिया सों यों “संत कहाँ?" "संत चूल्हे माँझ कही ऐसे, अलसाय के॥वानीसुनि जानी, चलेमग, सुखदानी मिले, "कहाँ कित हुते?" सो वखानी उर आय के । “बोली वह साँच, वही आँचही को ध्यान मेरे," प्रानि गृह फेरि किये मगन जिंवाय के॥४०५॥ (२२४) वात्तिक तिलक । श्रीसंतभक्तजी सदा साधुसेवा के अनुराग में पगे प्रति ग्राम ग्राम में जा, भिक्षा कर, नियम से संतसेवा करते थे। एक दिवस भिक्षा के लिये किसी ग्राम में गये थे, इनके पीछे गृह में संतजन आए। आपकी श्री से, जो कि बड़ी ही विमुख और संसारिन थी, सन्तों ने पूछा कि "संतभक्तजी कहाँ गये?" उसने अलसाकर रूक्षता से कहा कि "चूल्हे में गये।"वैष्णव इसकी वाणी सुन, अतिविमुख जान, वहाँ से चल दिये । मार्ग में विविध प्रकार की भिक्षा लिए हुए संतसुखदाता श्रीसंतभक्ताजी मिले और दण्डवत् किया । संतों ने पूछा कि “कहाँ गये थे?" तब, प्रभुप्रेरणा से आपके शुद्ध हृदय में