पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६६४

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६४५ भक्तिसुधास्वाद तिलक। पकवान अनूप रस स्वाद से भरे हुए, साधु ब्राह्मणों को खिलाये। तदनंतर एक साधु का रूप धर प्रसाद लेकर वन में जहाँ भक्तजी बैठे थे, वहाँ जा, प्रसाद देकर, प्रभु ने कहा कि "हम तिलोक के घर गये थे, उन्होंने हमको पवाकर और दिया भी है, सो तुम पाओ।" भक्तजी ने पूछा कि “महाराज ! कौन तिलोक?" आप बोले कि "अरे। इसी नगर का सुनार भक्त, और अन्यत्र तिलोकी में दूसरा ऐसा कौन है ?" संत के वचन सुन आपको बड़ा ही आनन्द हुआ, प्रभु की कृपा- कौतुक विचार प्रसाद पाकर सानुराग रात्रि में घर आये, देखें तो सुखमय चहल पहल हो रहा है और घर धन धान्य से भरा है, जान लिया कि श्रीलक्ष्मीजी भगवान के पदपंकज इस घर में आये, मेरे बड़े ही भाग्य उदय हुए। प्रभु भक्तवत्सल की जय ।। (५०७) छप्पय । (३३६) अभिलाष अधिक पूरन करन, ये चिन्तामनि चतुर- दास । सोम, भीम, सोमनाथै, बिको, विशाखौ. लम- ध्यान महदा, मुकुंद, गनेस, त्रिविक्रम, रघु, जग जाना ॥ बालमीक, वृद्धव्यास. जगन, झाझवीठले आचारज । हरिभू, लाली, हरिदास, बाहवल; राघव आरज॥ लाखा, छीतर, उद्धव कपूर, घाटम, धूरी, कियो प्रकास । अभिलाष अधिक पूरन करन, ये चिन्तामनि चतुरदास ॥६६॥ (११५) वात्तिक तिलक। ____ अपने अनुकूल जनों की अतिशय अभिलाषा पूर्ण करनेवाले, . चिंतामणि के समान, परमार्थ पथ में चतुर, ये सब भगवदास हुए। ' नाम-सोमभक्त, भीमभक्त, सोमनाथजी, विकोजी, विशाखाजी,