पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६६५

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ANIMAugHA -HAMREAMmandu श्रीभक्तमाल सटीक । लमध्यानजी, महदाजी, मुकुंदभक्तजी, गणेशभक्तजी, त्रिविक्रमजी, रघुभक्तजी, इन सबों को सम्पूर्ण जगत् जानता था। वाल्मीकिभक्तजी, वृद्धव्यासजी, जगनजी झाभूजी, विट्ठल प्राचार्यजी, हरिभूजी, लालाजी, हरिदासजी, बाहुबलजी, परमश्रेष्ठ राघवदासजी, लाखोजी, बीतरजी, उद्धवजी, कपूरभक्तजी, घाटमजी, घूरीजी, इन सबोंने अपने सुयश जग में प्रकाश किये। १ श्रीसोमजी | १५. श्रीमाभूजी २ श्रीभीमजी १६ श्रीविठ्ठलभाचार्यजी ३ श्रीसोमनाथजी १७ श्रीहरिभूजी ४ श्रीविको (विकोदी) जी १८ श्रीलालाजी ५ श्रीविशाखाजी १६ श्रीहरिदासजी ६ श्रीलमध्यानध्यानजी २० श्रीबाहुलजी ७ श्रीमहदाजी २१ श्रीराघवजी पार्य (श्रेष्ठ) श्रीमुकुन्दजी २२ श्रीलाखाजी श्रीगणेशजी २३ श्रीछीतरजी | इन्होंनेजग १. श्रीत्रिविक्रमजी २४ श्रीउद्धवजी में अपने ११ श्रीरघुजी (जगविख्यात) २५ श्रीकपूरजी। यशप्रकाश १२ श्रीवाल्मीकिजी २६ श्रीघाटमजी किये ।। १३ श्रीवृद्धव्यासजी २७ श्रीपूराजी १४ श्रीजगनजी (१३३) श्रीघाटमजी। श्रीघाटमजी, जाति के मीना, जयपुर राज्य के खोड़ी (घोड़ी) ग्राम के रहनेवाले, गुरुवचन में विश्वास और श्रीहरि में भक्ति कर उत्तम पद को प्राप्त हो कृतार्थ हुए । प्रथम उनकी बटमारी ठगी चोरी की वृत्ति रहा करती थी, भाग्यवश कुछ विवेक आया, किसी हरिभक्त का सुसंग हुआ, उन्होंने शिक्षा दी कि "बटमारी चोरी ॐ लमध्यानी, ऐसा एक नाम कोई बताते हैं, कोई लखमन ध्यानी, कोई रिभू, और कोई हरिभला, ऐसा नाम बताते हैं।