पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६७४

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H.. .pague.antra . . ...+ 14 . 4 N भक्तिसुधास्वाद तिलक । पुकार करी, भरी न अनीति जात, सेवा यह लीजिये ॥ बालि के सुनाई, "अहो कहा मन आई ?" तब बोलि के बताई, “अजू बात कान कीजिये । पहिले जु खाय, बन माँझ उठि जाय, पाले पाऊँ कहाँ धाय, सुनि मति रस भीजियै ॥ ४१४ ॥ (२१५) वात्तिक तिलक । एक दिन की बात है कि अतिसुन्दर भोग का थार रसोई करनेवाले मन्दिर में लिये आते थे, गोविन्दसखाजी मार्ग में बैठे बोले कि “पहिले तुझे पाने को दे दीजिये ।” सुनकर पूजा रसोई करनेवालों को बड़ा कोध हुअा, थाल को पटक, जा, गुसाईजी से पुकार किया कि "ऐसी सेवा आप लीजिये, इस लड़के की अनीति हमसे नहीं सही जाती।" गुसांईजी ने आपसे पूछा कि, लाला ! तेरे मन में क्या आई ?" इन्होंने उत्तर दिया “अजी महाराज ! मेरी बात सुनिये, यह आपका लाला पहले खाकर वन में चला जाता है, मैं पीछे पाने को पाता हूँ पीछे जाता हूँ, तब वह मुझे मिलता नहीं, ढूंढ़ता फिरता हूँ।" सुनकर गुसाइजी की मति प्रेमरस से भीग गई । उस दिन से थार मन्दिर में पहुँचते ही इधर इनको भी पवा देते थे। (५१७) छप्पय । (३२६) जे बसे बसत मथुरा मंडल, ते दयादृष्ठि मोपर करी। रघुनाथ, गोपीनाथ, रामभद्र, दासस्वामी । गुंजामाली चित उत्तम, बीठल, मरहठ, निहकामी ॥ जदुनंदन, रघुनाथ, रामानंद, गोबिन्दै, मुरलीसाती। हरिदास मिश्र, भगवान, मुकुंद, केसी दांडेती ॥ चतुरमुर्ज, चरित्र, विष्णुदास, बेनी', पदमो सिर धरौ। जे बसे बसत मथुरा मंडल, ते दयादृष्टि मो पर करौ॥१०३॥ (१११) वार्तिक तिलक । जो भक्त मथुरामंडल में आगे बसे हैं और जो अब वसत हैं. ते