पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६७७

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ANIMAHARAMugal.-.- 09- 4 A ६५८.. श्रीभक्तमाल सटीक । यानी। गंगा, गौरी, कुँवंरि, उबीठी, गोपाली, गनेसदे- रोनी ॥ कला, लखौ, कृतगंदौ, मानमती सूचि, सति- भामाँ। जमुनी, कोली, रामाँ, मृगौ, देवांदे* भक्तन वि- श्रामा । अँग, जेवों, कोकी, कमला, देवकी, हीरा, हरि- चेरी, पोखे भगत । कलियुग जुबती जन भक्तराज म- हिमा सब जानै जगत ॥१०४॥(११०) वात्तिक तिलक। कलियुग में ये युवतीजन भक्तराज हुई, इनकी महिमा कीर्ति सब जगत् जानता है। श्रीसीतासहचरीजी, झालीजी, सुमतिजी, शोभाजी, भटियानी उमाजी, गंगाजी, गौरीजी, कुँवरिजी, उनीठाजी, गोपालीजी, रानीगणेशदेईजी, कलाजी, लसाजी, कृतगढ़ौजी, मानमतीजी, परम् पवित्र सतिभामाजी, यमुनाजी, कोलोजी, रामाजी, मृगाजी, देवादेईजी, ये सव हरिभक्तन को विश्राम देनेवाली हुई। जेवाजी, कीकीजी, कमलाजी, देवकीजी, हीराजी, हरिचेरीजी इन्होंने भोजन वस्त्रादिकों से इरिभक्तों की सेवा की। श्रीजनकनन्दिनी वा श्रीभानुसुता की बड़ी कृपापात्र हुई। १ श्रीसीतासहचरीजी | ११ श्रीगोपालीजी २ श्रीमालीजी १२ श्रीरानीगणेशदेईजी ३ श्रीसुमतिजी १३ श्रीकलाजी ४ श्रीशोभाजी १४ श्रीलखाजी ५ श्रीप्रभुताजी १५ श्रीकृतगढ़ौजी . ६ श्रीउमाभटियानीजी १६ श्रीभानमतीजी ७ श्रीगंगाजी १७ श्रीसतिभामाजी ८ श्रीगौरीजी १८ श्रीजमुनाजी श्रीवरिजी १६ श्रीकोलीजी १० श्रीउदीठाजी २० श्रीरामाजी देवादे' अर्थात् देनेवाली, वा देवादेई, देवादेवी ।