पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६८१

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Hum a nsurtamansamanara-ar ६६२................ श्रीभक्तमाल सटीक । आई हैं।" इस वार्ता को श्रीजानकीवल्लभजी जान गये तब एक दिवस एकांत पूजा में रानी को प्राज्ञा दिया कि “बहुत काल से खड़ी हो वैठ जाओ।" आप प्रणाम कर बोली, “कृपानिधे ! आप खड़े हैं, किंकरी कैसे बैठ जाय ?" प्रभु बोले “हम बैठ जाय फिर उठेंगे नहीं।" आप बोली "जैसी इच्छा होय ।” सबों के विश्वास के लिये आपके ऊपर कृपाकर श्रीजानकीवल्लभजी वीरासन से बैठ गये। अव तक बिराजे ही हैं। श्रोडला नगर किसी हेतु से उजड़ गया परन्तु प्रभु और भापके सेवक वर्गमात्र अब तक रहते हैं। श्रावणशुक्लतृतीया को आप भूलने पर विराजते हैं तब विशेष उत्सव मेला होता है ।। (५२३) छप्पय 1 (३२०) हरि के संमत जे भगत, ते दासनि के दास ।। नरबाहने, बाहन बरीस, जापूं, जैमले, बीदावतै । जयंत, धारा, रूपा, अनुभई, उदारावंतं ॥ गंभीरे अर्जुन, जनार्दन, गोबिंद, जीता।दामोदरै, सौपिले, गेंदा, ईश्वर हेमबिदीतों ॥मया- नन्द महिमा अनंत {ढीले, तुलसीदास । हरि के संमत जे भगत, ते दासनि के दास ॥१०५ ॥ (१९०) वार्तिक तिलक । श्रीभगवान के अनुकूल जो भक्त हैं, मैं उन भक्तों के दासों का दास हूँ॥ श्रीनरवाहनजी, श्रीवाहनवरीशजी, श्रीजापूजी, श्रीजयमलजी, श्रीविन्दावतजी, श्रीजयन्तजी, श्रीधाराजी, श्रीरूपाजी, श्रीअनु- भवीजी, श्रीउदारावतजी, श्रीगंभारे अर्जुनजी, श्रीजनार्दनजी, । श्रीअयोध्याजी श्रीकनकभवन में जो श्रीविग्रह है आप ठीक उसी मूर्ति के सदृश है । भेद केबल इतना ही है कि वे श्याम है और ये गौर ॥ ( रानी की स्थापित बैठी मूर्ति है )