पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६८२

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M L .. . - - - - भक्तिसुधास्वादतिलक। श्रीगोविन्दजी, श्रीजीताजी, श्रीदामोदरजी, श्रीसांपिलेजी, श्रीगदा- भक्तजी, श्रीईश्वरभक्तजी, श्रीहेमविदीताजी, अपार महिमावाले श्रीमयानन्दजी, श्रीगुढोलेजी, श्रीतुलसीदासजी ॥ इन सब भक्तों के दास का मैं दास हूँ॥ १ श्रीनवाहनजी | १२ श्रीजनार्दनजी २ श्रीवाहनवरीशजी १३ श्रीगोविन्दजी ३ श्रीजापूजी १४ श्रीजीताजी ४ श्रीजयमलजी १५ श्रीदामोदरजी ५ श्रीविन्दावतजी १६ श्रीसांपिलेजी ६ श्रीजयन्तजी १७ श्रीगदाभक्तजी ७ श्रीधाराजी १८ श्रीईश्वरजी ८ श्रीरूपाजी १६ श्रीहेमविदीताजी ६ श्रीअनुभवीजी २० श्रीमयानंदजी १० श्रीउदारावतजी | २१ श्रीगुढीलेजी ११ श्रीगंभारे अर्जुनजी २२ श्रीतुलसीदासजी (दूसरे) (१३६)श्रीनरवाहनजी। (५२४) टीका । वात्तिक । (३१९) रहैं भौगाँव नाँव, नखाहन साधुसेवी, लूटि लई नाव जाकी, वंदीखाने दिया है । लौड़ी श्राचे दैन कछू खायवे को, आई दया, अति अकुलाई, लै उपाय यह कियो है ॥ बोलो "राधावल्लभ" औ लेवी "हरिबंस" नाम, पूछ "सिष्य" नाम कहो, पूछी नाम लियौ है। दई मँगवाय बस्तु राखि यो दुराय बात प्राय दास भयो कही रीमि पद दिया है ॥ ४१६॥ (२१०) वात्तिक तिलक । श्री "नस्वाइन" जी श्रीहरिवंशजी के शिष्य, परम संतसेवी, "भौगाँव" में रहते थे। ब्रज के एक जमींदार थे और लुटेरे भी। कोई सेट लक्षावधि की संपदा नाव में भरे गंगाजी में चला आता था, आपने संतसेवा के लिये सब लूटलिया, और उस सेठ को कारा-