पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६८५

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श्रीभक्तमाल सटीक । चले, सब छिपी, नैकु देखी, याकै मारियै ॥ ४२० ॥ (२०६) वार्तिक तिलक । जयपुरप्रदेश के “जोवनेर" नामक एक पुर के वासी श्री. "गोपाल" जी ने भक्त-इष्टता का निर्वाह भलीभाँति से किया, सो वार्ता सुनकर मुझे प्रति प्यारी लगी। आपके कुल का कोई जन विरक्त वैष्णव होगया था, वे आपके हरिभक्त को इष्ट मान सेवा करने का प्रसंग कहीं सुन, परीक्षा लेने के लिये द्वार पर आये। श्रीगोपालजी ने देख के चरणों में प्रणाम कर कहा कि “आप अपने घर में पधारिये ।"वे बोले कि "मेरा प्रण है कि स्त्री का मुख न देखू, सो उस प्रतिज्ञा को छोड़ तुम्हारे घर के भीतर कैसे जाऊँ ?" आपने कहा “चलिये, अपना प्रण मत छोड़िये, स्त्रियाँ एक ओर रहेगी, आपके सामने नहीं प्राबैंगी।" तब वे गृह में गये, आपने स्त्रियों को छिपा दिया परन्तु एक स्त्री थोड़ा झाँकने लगी, इन्होंने देखकर श्रीगोपालजी के गाल पर एक तमाचा जड़ ही तो दिया ॥ (५२७) टीका । कवित्त । (३१६) एक पै तमाचो दियो दूसरो ने रोस कियो, “देवौ या कपोल पें" यों बानी कही प्यारी है । सुनि, आँसू भरि आये, जाय लपटाये पॉय, कैसे कही जाय यह रीति कछु न्यारी है ॥ "भक्त इष्ट" सुन्यौ, मेरे बड़ी अचरज भयो, लई मैं परीक्षा, भई सिच्छा मोको भारी है। बोल्यौ, अकुलाय, "अजू पैयै कहा भाय, ऐपै साधु सुख पाय कहैं, यही मेरी ज्यारी है" ॥ ४२१॥ (२०८) वार्तिक तिलक । थप्पड़ के लगते ही एक दूसरे ने तो क्रोध किया, पर श्रीगोपालजी

  • एक गोपालजी काशी के निकट बाघुली ग्राम के; और एक गोपालभट्ट' श्रीवृन्दावन के

श्रीहरिवशजी के ठाकुर के सेवक, एक गोपालजी श्रीपयहारीकृष्णदासजी के शिष्यो मे, एक गोपालजी कवि ब्रज के एक गोपालजी हरिव्यासदेव की दूसरी साखा में भगवानदासजी के शिष्य, एक गोपालजी कवि बांसवाड़े के, एक कवि ईंटोरा के, एक जटाधारी, एक नरोड़ा के, एक गोपालजी "वल्लभाख्यान" के कर्ता, एक कायस्थ सिंहनद के, एक बड़नगर के, और एक गुजरात के ॥ इतने श्री गोपाल" जी प्रसिद्ध है ।।