पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६८७

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- - - - - - - - - - - - -- -- श्रीभक्तमाल सटीक "मुरघरखण्ड” (मारवाड़) में आपका निवास था, भापके भजन और सन्त-सेवा के प्रताप से सब राजा आज्ञाकारी थे, महामन्त्र श्रीराम नाम में आपको दृढ़ विश्वास था और भगवद्भक्तों के पदपंकज-रज के व्रतधारी थे। श्रीजगन्नाथ प्रभु के द्वार पर दर्शन के हेतु साष्टांग दण्डवत् करते हुए अपने गृह से पधारे । श्रीजगन्नाथजी ने अपने दास पर दया कर, जो अवश्य करने योग्य कार्य था उस को करने के लिये हुण्डी करा के फिर घर को भेजा। जैसे 'सुरधुनी अोध' जो श्रीगंगाजी की धारा उसमें मिलने से कुत्सित मलीन नालाओं का भी नाम रूप पलट कर श्री "गङ्गा" ही का नाम रूप हो जाता है, इसी प्रकार, वानरवंश डोम जाति से भगवत् भागवत में मिलकर आप भी तद् प हो गये। दो. "तुलसी नारी जगत को, मिले संग में गंग। महा नीचपन आदिको, शुद्ध करै सतसंग ॥१॥ श्लो. “यस्माद्यस्मादपिस्थानाद्गंगायामम्म आपतत् । . सर्व भवति गाङ्गेयं को न सेवेत बुद्धिमान ॥ १॥" कवित्त १२ का तिलक पृष्ठ ४३ में देखिये । भूलसे १०७ वें छप्पय को १११ वां छपगया है और "४२२ वें कवित्त में" के स्थान पर "४२६ में," छप गया है। (५२९) टीका । कवित्त । (३१४) “लाखा" नाम भक्त, वाको “बानरौं", बखान कियो, कहै जग डोम जासों मेरौ सिरमौर है । करै साधुसेवा बहु पाक डारि मेवा, संत जेवत अनंत सुख पावै कौर कौर है ॥ ऐसे में अकाल

  • कहै जगडोम"। पश्चिम वृन्दावन मारवाड़ आदि देशो की बोली बानी को न जानने

वाले "डोम" जाति से इस प्रान्त का डोम सूप वेचनेवाला बँसफोड़ वा भगी (हलाल खोर) जानते है, सो उनकी बड़ी भूल है, क्योकि इस देश मै "डोम" "भाट," "चारण, इनकी जाति और वत्ति एक समान "कथक" की सी होती है सोई डोम लाखाजी थे (इधर के डोम नही); डोम ही को "वानरवंशी" भी कहते है । इसीसे मुशी तुलसीराम', श्रीतपस्वीरामजी, भक्त कल्पद्रमकार, और ज्वालाप्रसादजी ने लाखाजी को श्रीहनुमानवंशी लिखा है। बहुत महात्मा श्रीनाभा स्वामी को भी इसी जाति में जन्म कहते है । विदित हो कि उधर का 'डोमवश' इधर का 'डोम' नही॥ और वृत्ति एक समान कहते है । इसीसे मुशी तुलसाला है। बहुत महात्मा