पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६८८

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M4Mira Pur n NAMA.MHttaanMH-MAM-HIMALArtnon- भक्तिसुधास्वाद तिलक। पसौ, प्रा धरि माल जाल, कैसे प्रतिपाल करें, ताकी और ठौर है प्रभुज स्वपन दियो “कियौ मैं जतन एक गाड़ी भरि गेंहूँ मैंसि यावै करो गौर है"॥ ४२२॥ (२०७) ___ वात्तिक तिलक । श्रीनाभास्वामीजी ने जिसको “वानर" कहके वर्णन किया, उन भक्तजी का “लाखा" नाम था, जगके लोग भापको “डोम" "हनुमान- वंशी” कहते थे। श्रीमियादासजी कहते हैं कि भक्तिभूषित होने से मेरे तो सिरमौर हैं । आप बड़ी प्रीति से साधु-सेवा करते थे।अनेक मेवे डालके पकवान मिठाई बनवाकर भोजन कराते थे, जिन पदार्थों को पाने में ग्रास ग्रास में संतों को अनंत सुख होता था । पेसी सेवा करते समय में बड़ा अकाल पड़ गया, तब तो बहुत से लोग तिलक माला वैष्णव वेषधर श्रापके यहाँ बाने लगे। अब सवों का कैसे प्रतिपाल करसके, विचार किया कि "इस घर को छोड़ कहीं चले जावें ।” उसी रात्रि में श्रीभक्तवत्सल रामजी ने स्वप्न दिया कि "तुम कहीं जाओ मत, हमने एक यत्न किया है, एक गाड़ी भर गेहूँ और एक दूध देती भैसि तुम्हारे यहाँ श्रावेगी, उसी से संतों की तथा और जीवों की सेवा सहायता करो ॥" (५३०) टीका । कवित्त । (३१३) "गेहूँ कोठी डारि मुँह मूदि नीचे देवो खोलि, निकसै अतोल पीसि रोटी ले बनाइये । दूध जितौ होय सो जमायके बिलोय लीजै, दीजे यों चुपरि संग छाँछि दै जिवाइय” | खुलिगई आँखें, भातिया सों जु आज्ञा दई, भई मन भाई, अजू इरिगुन गाइये । भोरे भयें गाड़ी भैसि आई, वही गति करी, करी साधुसेवा नाना भाँतिन रिझाइयै ।। ४२३ ।। (२०६) वात्तिक तिलक ! "उस गेहूँ को कोठी में भर उसका मुँह मूंद देना नीचे से छेद कर निकालना, उसमें अप्रमाण गेहूँ निकलेगा, उसको पीस पीस कर

  • "गौर गौर विचार ॥