पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६८९

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MAHAPO LHAN . HHomhun HAMAJMDHA . M- I n -n- श्रीभक्तमाल सटीक । रोटी बनवाना, दूध को जमाके मथके घी निकाल, रोटी में चुपड़ देना, और छाछ के साथ रोटी खिलाया करना ।" __ इतना सुनते ही जाग उठे, नेत्र खुल गये, अपनी धर्मपत्नी से सार की कृपा आज्ञा सुनाकर कहने लगे कि “प्रभु ने मेरे मन का भाया किया, अब उनके गुण गाय गाय सन्तों की सेवा करूँगा।" प्रभात होते ही गाड़ी भर गेहूँ और भैसि आई, जैसी प्रभु की आज्ञा थी उसी रीति से साधुनों की सेवा कर बहुत प्रकार से रिझाने लगे। (५३१) टीका । कवित्त । (३१२) आई कौन रीति, वाकी प्रीतिहू बखान कीजै, लीजै उर धारि सार भक्ति निरधार है। रहे दिग गाँव, तहाँ सभा एक ठाँव भई, दूटि गयो भाई सो उगाही को विचार है । बोलि उठ्यौ कोऊ “यौं ब्यौहार को तो भार चुक्यो, लीजियै सँभारि “लाखा" सन्त भव पार है"। लाज ददि तिन दिए गेहूँ लै पचास मन, दई निज भैसि संग सब सरदार है ॥ ४२४ ॥ (२०५) __ वार्तिक तिलक। वह भैसि और गेह गाड़ी किस रीति से आई और आपकी सन्तसेवा की प्रीति देख किस प्रकार प्रीतिपूर्वक भेजा सो सुनिये । इस जगत् में भक्ति ही सार है सो निश्चय कर यह बात हृदय में रख लीजै॥ जिस गाँव में लाखाजी थे उसी के समीप के एक गाँव में सब लोगों ने इकट्ठे हो सभा की कि उन लोगों का एक भाई निधन हो गया उसको सम्पन्न करने के लिये सबसे धन उगाहैं यह विचार ठीक किया गया । 'प्रभु प्रेरित उनमें से एक बोला कि "व्यवहार का भार तो चुक गया, परन्तु परमार्थ में श्रीलाखाजी सन्तको भी सँभार करना चाहिये जिससे भवसागर के पार उत्तर जाना है। उसके वचन सुन लाज से दव सबों में पचास मन ५०९ गेहूँ दिया और सवों में जो श्रेष्ठ था उसने अपनी भैसि दी । इस रीति से गेहूँ की गाड़ी और भैसि आई॥