पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६९३

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६७४ - - - 140 श्रीभक्तमाल सटीक । जानें। माला मुद्रा * देखि तासु की निन्दा ठानें । ऐसे कुल उत्पन्न भयौ, भागौत सिरोमनि । ऊसर ते सर कियौ, खंडदोषहिंखोयोजिनि । बहुत ठौर परचौ दियौ, रसरीति भक्ति हिरदै धरी । जगत बिदित "नरसी" भगत, (जिन) "गुज्जर"धर पावन करी ॥ १०८ ॥ (१०६) कलि अब्द संवत् ईसवी सन् शाके ४६४४ १६००१५४३१४६५ ४६६७ १६५३ १५६६ १५.१८ दो० "हृदय राखि मेहता-चरित, भजु श्रीसीताराम । 'तपसी मिलिहै भक्तिमणि, पूजहिं सब मनकाम ॥" वार्तिक तिलक । जगत् में विख्यात श्रीनरसी भक्तजी हुए, जिन्होंने गुजरात देश की भूमि को और उस प्रदेश के वासियों को पावन किया, वहाँ के लोग बड़े ही स्मात, कर्मकाण्ड में श्राशक्त, और अज्ञानी थे। श्रीहरिभक्ति को लवलेशमात्र भी नहीं जानते, जो किसी को तुलसी की कंठी माला, वैष्णवीय तिलक (ऊर्ध्व पुण्ड), शंख चक्रादि मुद्रा धारण किये देखें, उसकी बड़ी ही निन्दा करते थे। ऐसे कुल में उत्पन्न होकर, आप भाग- वतशिरोमणि हुए । वह देश ऊसर भूमि के समान भक्तिजलहीन अशुद्धतायुक्त था, उस गुर्जरखण्ड (गुजरात) को भगवद्धर्म जल युक्त प्रेमपंकज विकसित सरोवर समान करके दोषों को जिन्होंने नाश किया और बहुत ठिकाने पर परीक्षा परचौ दिये (सो टीका में वर्णन होंगे), ऐसे रस रीति भक्ति हृदय में धारण करनेवाले श्रीनरसीजी हुए ।। (उनको पुनः पुनः दण्डवत)॥शृङ्गारमाधुर्यनिष्ठा में आप गोपिकाओं के तुल्य (५३७) टीका ! कवित्त । (३०६) "जूनागढ़" वास, पिता माता तन नास भयो, रहै एक भाई "मुद्रा"-छाप भगवत्आयुध के ॥