पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६९६

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६७७ +++ भक्तिसुधास्वाद तिलक । इससे श्रीशंकर ने अपनी इच्छा से श्रीनरसीजी को सखी तन दिया और आप भी वैसा ही स्वरूप बनाकर प्रति कृपा ले श्रीनित्य वृन्दावन रासमंडल का इनको दर्शन कराया, जहाँ मणिन जटित भूमि में अगणित अनेक प्रियाओं के मध्य लाखजी के दर्शन हुए। (५४०) टोका । कवित्त । (३०३) हीरनि खचित रासमंडल, नचत दोऊ रचित अपार नृत्य गान तान न्यारियै । रूप उजियारी, चंद चाँदनी न सम, तारी देत करतारी, लाल- पति लेत प्यारिये। ग्रीवा की दुरानि, कर आँगुरी मुरनि, मुखमधुर सुरनि, सुनि श्रवन तपारियै । वजत मृदंग मुँह चंग संग, अंगअंग उठति तरंग रंग छवि जीकी ज्यारिये ॥ ४३२ ॥ (१६७) वाधिक तिलक। सोने से रचित हीराओं से जटित रासमंडल में दोनों प्रियाप्रियतम नाच रहे हैं. लोक से न्यारा नाच और गान हो रहा है, श्रीश्यामाश्याम के रूप की अनूप उजियाली फैली है, चन्द्र और चाँदनी की समता तथा हाथों की उँगलियों की मुरनि देख, मुख का मधुर स्वर सुन, आँखों कानों की ताप नाश हो जाती है, मृदंग बज रहा है, उसी के संग १ मुँहचंग भी बजता है और अंग अंग में जीव की भी जीवनी सी छवि के तरंग उठ रहे हैं। ( ५४१ ) टीका । कवित्त । ( ३०२) ___दई लै मसाल हाथ, निराखि निहाल मई, लाल डीठि परी कोऊ नई यह आई है । शिव सहचरी रंगभरी घटकरी, बात मृदुमुसकात नैन- कोर मैं जताई है ।। चाहै याहि टारौ यह चाहै प्रान वारौ, तब श्याम ढिग आय कही नीके समुझाई है। “जावो यह ध्यान करो, करौ सुधि, आऊँ जहाँ,” पाए निज ठौर चटपटी सी लगाई ॥ ४३३ ॥ (१६६) वार्तिक तिलक। ___ करुणायतन श्रीशिवजी ने नरसी सखी के हाथ में दीपक दिया. "मसाल"nt=मशाल, बड़ा दीपक ॥