पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७०१

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श्रीभक्तमाल' सटीक । वात्तिक तिलक । . एक टूटी सी गाड़ी में दो बूढ़े बैल जोड़ उसी पर चढ़, श्रीनरसीजी चले, जब उस ग्राम में पहुँचे, एक ब्राह्मण ने पुत्री से कहा कि "तुम्हारे पिता पाये हैं।" उसने श्राकर देखा कि कुछ पदार्थ पास में नहीं। तब अति उदास मुख कर कहने लगी कि "जो श्राप कुछ लाये ही नहीं तो पाकर किया ही क्या ?" आपने उत्तर दिया कि "चिन्ता मत कर, सासु के निकट जाके कह कि जो जो पदार्थ चाहै सो सब भले प्रकार एक कागद में लिख दें।" कन्या ने सासु से समझाकर ऐसा ही कहा । वह बहुत रिसाकर कहने लगी कि “मुझ से हँसी की है।" फिर ग्राम भर के सब लोगों के नाम लिखवा दिया कि "इन सबको वन भूषण चाहिये ॥" (५४८) टीका । कवित्त । (२९५) । कागद ले आई देखि दूसरें फिराई युनि भूलै पै न पाई जात 'पाथर' लिखाये हैं। रहिवे को दई ठौर, फूटी ढही पौरि जाके बैठे सिरमौर बाय बहु सुख पाये हैं। जेल दै पठायो भली भाँति के औटायो, भई बरषा, सिरायौ, यों समोय के अन्हाये हैं। कोठरी सँवारि; आगे परदा सो दियौ डारि, लै बजाई तार बेस अगनित आये हैं ॥ ४४०॥ (१८६) वात्तिक तिलक । पुत्री वह पत्र (सूची) लेकर आई, आपने देखकर कहा कि "फिर जा, किसी के लिये कोई वस्तु भूल गई हो, सो भी लिखवा ला, पीछे नहीं मिलेगी।" पुत्री ने फिर जाकर कहा, सासु बोली "अब क्या लिखाऊँ ? "दो पत्थर" और लिख दे ॥" श्रीनरसीजी के रहने के लिये किसी का एक छटा टूटा घर था वही बता दिया गया था। श्रीभक्तसिरमौरजी उसी में जाकर बिराजे, बड़े प्रसन्न हुए, पुत्री की सासु क्रोध से तपी तो थी ही, इससे जल बहुतही प्रौटाकर भेजा, उसी बण वर्षा हुई, जल पड़ने से वह जल भी यथार्थ हो गया । आपने स्नान किया। उस गृह में एक कोठरी थी उसको भार बहार कर दार में एक वस्त्र पर्दा डाल दिया, और वह