पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७०४

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H indiMinute भक्तिसुधास्वाद तिलक। वे दोनों रंगभरी गानवती ये चारों मिलके प्रभु के आगे गानपूर्वक बाजे बजा बजा भाव बता बताकर नाचा करती थीं। यह सब देख “सालंग" नाम ब्राह्मण जो श्रीनस्सीजी का मामा भोर जूनागढ़मंडल के राजा का प्रधान मंत्री था, उसने राव (राजा) को सुनाकर कहा कि "नरसी बड़ा विपरीत पाचरण कर रहा है" सो, राजा की अनुमति लेकर बड़े बड़े दंडी और पण्डितों का समाज इकट्ठा कर उसने कहा कि "आप सब उसको शाम्ररीति से परास्त कर कुमार्गी ठहराइये, तब हम देश से निकाल देंगे।" यह कहकर चार चपरासी भेजे कि "जाकर नरसी को बुला लाओ ॥ श्राकर इन्होंने आपसे कहा कि "चलो, राजसभा में पंडितों का समाज बैठा है, सो वहाँ वाद और विचार के निमित्त तुमको सालंगजी ने बुलाया है, हमें इसीलिये भेजा है।" (५५२) टीका । कवित्त । (२९१) "चारों तुम जावो टरि, भयो हमै राजा डर", "सकै कहा करि ? अजू चल संग संगही"। नाचत बजावत ये चली दिग गावत सुभावत मगर्न जानी भजि गई रंगहीं ॥ आये वाही भाँति, सभा प्रभा हत भई, तक बोले कहा "रीति यह जुवती प्रसंग हीं"। कही “भक्ति गंध दरि, पढ़े पोयी, परी धरि, श्रीशुक सराही तिया माथुरानि भंगहीं" ।। ४४४ ॥ (१८५) __ वात्तिक तिलक । . श्रीनरसीजी ने सुनकर दोनों गानेवालियों तथा अपनी सुताओं से कहा कि "तुम चारी कहीं टल जावो, मुझको राजा का भय है।" उन्होंने उत्तर दिया कि "राजा क्या कर सकता है ? हम चारों की चारों मापके साथ ही सभा में चलेंगी," और गाते बजाते नाचते, प्रेमरंग में भीगी, भाव में मग्न चलीं, उसी प्रकार चारों प्रेमवतियों को साथ लिये श्रीनस्सीजी सभा में आये। आपकी भक्ति तेज देख वह सभा प्रभाहत हो गई सबके मुख उतर गए। तथापि पूछा कि यह कौन रीति है और किस ग्रंथ में लिखी है कि