पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७०५

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htArAN mmandu -Panta MAHARA ६८६ श्रीभक्तमाच सटीक। अपने साथ में निरंतर स्त्रियों को रखते हो ? श्रीनरसीजी ने उत्तर दिया कि आप सबको भगवद्भक्ति की गंधमात्र भी नहीं प्राप्त हुई। इससे श्रापकी इस कोरी पंडिताई पर धूल पड़ गई। श्री हो या पुरुष हो, जिसमें भगवद्भक्ति हो उसी का साथ करना चाहिये, देखिये, श्रीमद्भागवत में परमहंस श्रीशुकदेवजी ने मथुरावासी ब्राह्मणों की स्त्रियों की कैसी श्लाघा प्रशंसा की है, और उन ब्राह्मणों ने स्वयं अपनी भक्तिवती स्त्रियों की प्रशंसा कर अपने को धिकार दिया ॥" (५५३) टीका | कवित्त । (२९०) बोलि उठ्यो विप्र एक "छक प्रसंग देख्यो", कह्यौ रसरंग भलो दखौ नृप पाँय में। कही "ज विराजौ, गाजी, नित सुख साजी जाय, किये हरि राय बस, भीजे रही भाय मैं ॥ धारौ उर और सिरमौर प्रभु मंदिर में सुन्दर केदारौ राग गावे भरे चाय मैं | स्याम कंठ माल टूटि आवत रसाल हियें, देखि दुख पावै परे विमुख सुभाय मैं ॥ ४४५ ॥ (१८४) , वात्तिक तिलक । श्रीनरसीजी का भक्ति प्रभाव युक्त उत्तर सुन, प्रतिपक्षी लोग परास्त हुए, तब एक हरिभक्त ब्राह्मणदेव ने राजा से श्रीनरसीजी के छुछक के प्रसंग का प्रभाव कह सुनाया कि “महाराज ! मैंने अपने नेत्रों से देखा है कि आपने एक कोठरी में पट डालकर प्रभु का यश गान किया सो अनेक प्रकार के अमूल्य भूषण बसन निकले, प्रामभर को पहिनाया।" सुनकर राजा श्रीनरसीजी के चरणों में प्रणाम कर बोला “आप जाके सुखपूर्वक विराजिये, श्रीभगवन्नामयश सदा गान कर आनन्द से गरजिये, क्योंकि आपने श्रीहरि को वंश कर लिया, सो उनके भाव प्रेम में मग्न रहिये ।" सुनकर श्रीनरसीजी यानन्द से अपने घर चले आये ।। इसके अनंतर एक वार्ता और सुनकर हृदय में धारण कीजिये। भक्तसिरमौर श्रीनरसीजी प्रभु के मन्दिर में सुन्दर प्रेम उत्साह में