पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ram-mai भक्तिसुधास्वाद तिलक। (५५८) टीका ! कवित्त । (२८५) करन सगाई आयो, पायो वर भायो नहिं, घर घर फिखो, बिज -रसी बताया है। आय, सुख पाय, पूछयो, सुत सो दिखाय दियौ, कयौ बै तिलक मन देखत चुरायौ है ॥ “अजू हम लायक " 'तुम सब लायक हों" सायक सो छुट्यो जाय नाम ले सुनायी है। सुनत ही, मायौ ढेरि ।, कई “ताब कूटा वह, वाल बोरि आये, जावी फेरि दुख छायो है ॥४५० ॥(१६७) वात्तिक तिलका एक ग्राम से किसी धनी ब्राह्मण की कन्या के विवाह के लिये उसका पुरोहित ब्राह्मण जूनागढ़ में आया। बहुत ठिकाने वर देखे परंतु उसको कोई अच्छा न लगा, किसी ने कहा कि “एक पुत्र नरसीजी के बहुत सुन्दर है। सुखपूर्वक आके उस ब्राह्मण ने श्रीनरसीजी से पूछा । भआपने पुत्र को दिखा दिया, देखते ही विप्रजी का मन हर गया। और उन्होंने तत्काल तिलक कर ही दो दिया। नरसीजी ने कहा कि “कन्या के पिता धनी हैं, मैं उनके योग्य नहीं है" पुरोहितजी ने उत्तर दिया कि “आप सब लायक हैं। तिलक करके बाण के समान वेग से आये, और कन्या के पिता से नाम सुनाया कि "मैं नरसीजी के पुत्र को तिलक चढ़ा आया हूँ।" सुनते ही कन्या का पिता दुःखित तथा उदास हो माथा हिलाके और ठोंकके कहने लगा कि "वह तो तालकूटा है, मेरी कन्या को तुमने तो डुवा दिया, मुझको इस भात का बड़ा ही दुःख है, जाश्रो, तिलक फेर लायओं"। (५५९) टीका । कवित्त । (२८४) __ "काटिक अँगूठा डारी, तब सो उचासे बात. मन में विचारी, कियौ तिलक बनाय के। जाने "सुता भाग ऐसे” रहे सोच पागि सब पावै जब ब्याहिदे को धन दै अघाय के" ॥ लगन हूँ लिखि दियों, दियौ, दिज पानि लियो, डारि राख्यो कहूँ, गावै तालए कई "लामक योग्म , होरि" ठोकि, फोरि, पाठान्तर है ।।