पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७१९

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+ HRAM 4- श्रीभक्तमाल सटीक। ऊँची (तीसरी) छत पर विछौना बिछवाकर आपके प्रेम की गति देखने लगा। आप नूपुर बाँधके नाचने लगे, फिर सच्चे प्रेम से लोटते हुए तप्त घृत के कड़ाह में गिर पड़े । परन्तु प्रभु ने इस प्रकार की रक्षा की कि आपका एक बाल भी न बाँका हुना॥ देखकर सबकी बुद्धि पंगु हो गई। राजा को बड़ा त्रास हुना, भगवदासों में विश्वास बढ़ा, और श्रीमाधव भक्तजी का दास होकर भाव भक्ति की रीति ग्रहण की ।। इस प्रेमप्रसंग की रीति जगत से न्यारी है। दो० "गाए नीकी भाँति सों, कवित रीति मल कीन । श्रीमोहन अपनाइ के, अङ्गीकृत करि लीन ॥" (श्रीध्रुवदासजी) दो० "तनक न रही विरक्तता, पड़ी हगन की छाप। कहुँ माला बटुआ कहूँ, कहुँ गीता कहुँ बाप ॥१॥ पंडित पूजा पाकदिल, यह गुमान मति बाय । लगै जरब अखियान की, सबै गरव मिटि जाय ॥२॥" (श्रीभानुप्रताप तिवारी चुनार, मिरजापर)


(१४७) श्रीअङ्गदजी। (५६९) छप्पय । (२७४) भिलाष भक्त "अंगद" को, पुरुषोत्तम पूरन कयौ। नग अमोल इक, ताहि सबै भूपति मिलि जाचैं। साम, दाम, बहु करें, दास नाहिन मत काचें ॥ एक समै संकट मैं,ले वै पानी महि डायौ। "प्रभो ! तिहारी वस्तु,” बदन ते बचन उच्याखौ ॥ पांच दोय सत कोस ते, हरि हीरा लै उर धखौ । अभिलाष भक्त "अंगद" को, पुरुषोत्तम पूरन कयौ ॥११३॥ (१०१)